


तुझसे जब मेरी कोई बात चलती है,
तू मुझे मुझसे भी बेहतर समझती है!
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दर्द ओ गम पर,मैं मरहम लगाता गया।
तू सुनती रही,गुनगुनाता गया।
मुझको नाजुक सी खुशियाँ,हमेशा से थीं.
मैं ही उन पर, परदे लगाता गया।
चूमकर जो चखा,तेरे नूर को,
जितना तैरा मैं उतना समाता गया।
तेरी दौलत, मुहब्बत की बरसात है।
मुस्कुराते लवों पर क्या बात है ?
मुझको कह दे,जो कुछ है दिल में चला।
कहीं फिर ये मौसम,चला जाये ना।
मेरी हर छुअन,अब अमानत तेरी,
पास आ करवटों में समाता गया।
इस उनींदी पलक में है कोई बसा,
मुस्कुराहट में भी होता है नशा।
ये बातें, ये रातें,बडी हैं नयी,
अब तो डर भी नहीं खोने का कहीं,
बिन कहे मैं कहानी सुनाता गया।
तू सुनती रही,गुनगुनाता गया।
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देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410361798
मैं,
मेरी सोच,
मेरे खयाल,
जीया हुआ हर दिन,
काटे गये महीने,
और बितायी हर साल।
हर हद तक गया अनुराग,
परिपक्वता,
और फिर चुंबक के एक से छोरों सा वैराग।
मेरा सारा आलस, सारे काम,
मेरे से टूटा और जुङा हर नाम,
कूट-कूट कर भरे व्यसन, वासना, दुर्विचार,
मेरा अहंकार,
हर दिन की जीत ,
हर रोज़ की हार,
मेरा प्रेम,
समर्पण,
मेरा जुङाव और भटकाव,
टूटन, तडपन खुद का चिंतन,
कंठ तक भरा रीतापन,
मजे में डूबी हर एक बात,
मुझे उठाने और गिराने मैं लगे सैंकङों हाथ,
उसकी नफरत, मेरा प्यार,
हर अनुभव, हर चोट, हर मार,
सारी प्राप्तियाँ, सारे आनंद, सारे सुकून,
मुझसे जुडा हर काला, सफेद, तोतई और मरुन,
मेरी सारी ताकत,
सारी खामी,
.....श्री कृष्णम् समर्पयामी।
देवेश वशिष्ठ ' खबरी '
9410361798