16/3/08

राधा कैसे न जले- 3



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जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि इंदू अपने आप में कम्पलीट कहानी है... लेकिन हम तो बात बिट्टू की कर रहे हैं... इसलिये उसी की बात में आगे बताऊंगा... बिट्टू को समझने के लिय इंदू को समझना जरूरी था इसलिये बता दिया... तो मैं बता रहा था कि इंदू बदल गई थी... क्योंकि वो बिट्टू बनने वाली थी... आर्फन हाउस में बच्चों को पढ़ाने जाने लगी औऱ फिर उसकी दुनिया उन्हीं की हो गई... जिनके मां-बाप या तो नहीं थे... या उनका कुछ पता नहीं था... अनाथ बच्चों के साथ वो ऐसे रच बस गई कि दीन-दुनिया भूल गई... मां बाप का प्यार कैसा होता है ये उसके लिये भी एक सवाल ही था... पर इतना पता चल गया था कि मरियम की मूर्ती से वार्डन क्यों बहलाती थी... ये सवाल उसके लिये तो बिल्कुल ऐसा था जैसे अंधे होली खेलें औऱ उन्हीं से कोई बच्चा पूछ बैठे कि हमने कौन कौन से रंग खेले... ये हरा कैसा होता है... पर उसकी जिंदगी में तो अभी बहुत से रंग बचे थे... आसाम मे दुनिया हरी थी... कभी कभी लाल हो जाती थी... लाल सलाम आसाम में जोर लगा रहा था... उसे वहां से डर लगने लगा था... हर बड़े को वो घबराकर देखती थी... बस बच्चे थे जिनके साथ वो महफूज़ महसूस करती... लेकिन एक दिन बुलावा आ गया... घर से... उसका इंतज़ार हो रहा था... बेसब्री से... पहली बार... १२ साल में पहली बार... सब उसकी राह देख रहे थे... सब चाहते थे कि आखरी बार बेटी बाप को देख ले... आखरी बार... या पहली बार... जो भी कह लो... पर इंदू को घर जाना था... घर यानी मसूरी... वादियों के बीच... यहीं से शुरु होनी थी एक और कहानी... मेरी कहानी... जो आप पढ़ रहे हैं... वादियां... मेरी आवारगी की कहानी...
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जारी है...

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336