10/3/17

रुंधे गले से...

मुश्किल होता है नैसर्गिक होना
जैसे सबकी आवाज उठाओ,
और खो बैठो अपनी आवाज
ऊं... ऊं... घुर्र घुर्र.... बस
जाहिलों की तरह...
मन ही मन...
इंतजार करूं...
कोई शिकार करे... मैं जूठन खाऊं...


मुश्किल होता है नैसर्गिक होना
जब मन में विरोध हिलोरे मारे...
और बैठ जाऊं मन मार कर...
... श्श्श्श्श्शचुपचाप...
झूठी बातों के बीच
भूल बैठूं अपना सच
और कर लूं यकीन,
मान लूं ललाट लिखा...


मुश्किल होता है नैसर्गिक होना
जब पचा लूं हर जिल्लत को...
पूरी बेशर्मी से...
मार दूं अपने हर विचार को
नाजायज औलाद की तरह...
और भारी लबादों में उनके लिए ढूंढ़ता फिरूं
उनके बाप का नाम...
मार कर खुद को...


मुश्किल होता है नैसर्गिक होना
जब हर साबित करने पर तुलता हूं...
ये मेरा झूठा नकाब नहीं
यही सच्चाई है... कसम से...
गंगा कसम... मां कसम...
मेरी कसम... उसकी...
हां उसकी भी...
रुंधे गले से...


देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9953717705
03-03-2010