3/12/21

प्रेम से उचटे हुए मन

कहीं भी जाएं

कितना भी कमाएं

नदी, पहाड़ी, तीर्थ, संगम

कहीं भी घूम आएं

प्रेम से उचटे हुए मन

सो नहीं सकते

वो हंस नहीं सकते

कभी वो रो नहीं सकते।


प्रेम से उचटे हुए मन

सबसे शापित हैं

उनके माथे पर सभी की

हाय अंकित हैं 

प्रेम से उचटे हुए मन 

नर्क जीते हैं

रोज कड़वा घूंट भरकर

ज़हर पीते हैं


प्रेम से उचटे हुए मन

खुद को खाते हैं

अंतर्मुखी होकर

स्वयं से हार जाते हैं

प्रेम से उचटे हुए मन

टूट जाते हैं

उनके सभी सपने

शिकारी लूट जाते हैं


प्रेम से उचटे हुए मन

मौत से बदतर

प्रेम से उचटे हुए मन

तोड़ते हैं घर

प्रेम से उचटे हुए मन

में निराशा है

सबसे मुश्किल लिखना होता 

इसकी भाषा है


प्रेम से उचटे हुए मन

व्यर्थ जीते हैं

उनके हिस्से के कलश

सचमुच ही रीते हैं

प्रेम से उचटे हुए मन

बहुत व्याकुल हैं

दिख रहे जिंदा, लेकिन

लाश बिल्कुल हैं

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'

रात 1.08 बजे 

3 दिसंबर, 2021 (नोएडा)

2/11/21

तुम कैसे हो ? हम बढ़िया हैं !

 





तुम कैसे हो ? हम बढ़िया हैं 

एक गैया है.. दो पड़िया हैं

हम बढ़िया हैं 


फ्लैटों में पलते पोमेरियन

इस आंगन में चिड़िया हैं 

हम बढ़िया हैं 


वहां हाथ-हाथ में इन्फेक्शन ?

सब जुड़ी हुई यहां कड़िया हैं 

हम बढ़िया हैं 


वहां प्रोटीन कैल्शियम की गोली

यहां माटी है और खड़िया हैं 

हम बढ़िया हैं 


वहां दीवाली हैप्पी है 

यहां दीपक हैं, फुलझड़िया हैं

हम बढ़िया हैं 

- देवेश 'खबरी'

...नहीं !










दसियों साल से साथ हैं लेकिन

दस लम्हे भी अपने नहीं !

लंबी चौड़ी रात हैं लेकिन

दो सपने भी अपने नहीं !

 

उनसे पूछो जिनने हमको 

जीवन भर का साथ दिया !

चलना है तो चले जा रहे

कदमताल में 'अपने' नहीं !


तुझमें मुझको, मुझमें तुझको

दो दुश्मन से दिखते हैं

एक मांद है, एक म्यान है

इंसा हैं, तलवारें नहीं !


तेरी भी तो क्या मजबूरी

हिस्सा हिस्सा खत्म हुई,

जीने-मरने और रोने में

कितनी सारी रातें.. नहीं ?


6 बाई 6 के एक बिस्तर पर

कितनी हैं दीवारें..? नहीं? 

एक-दूजे को मार चुके है

अब औरों को मारें.. नहीं?


एक पटरी की खातिर दोनों

पहिये आगे बढ़ते हैं

उस नाज़ुक पटरी के ऊपर 

कितने बोझ हमारे.. नहीं?


तू भी चाहे अच्छा-अच्छा

मैं भी अच्छा बनना चाहूँ

अच्छा-अच्छा करते करते

काम बिगाड़े सारे.. नहीं?


दफ्तर से घर.. घर से दफ्तर

दिन कट जाने सारे नहीं ?

तेरे-मेरे बटुए में हैं

कितने सारे ताने.. नहीं?


आज धूप है, कल खप लेंगे

सर्दी आनेवाली है

सब कपड़ों को धूप दिख दो

काम पड़े हैं सारे .. नहीं!


- देवेश खबरी