5/6/07

मैनें कुछ नहीं छोडा है तुम्हारे लिये।


नंदीग्राम में फिर फाइरिंग हुई है!
वहाँ के किसान उपद्रवी हैं
उनका पेशा अलग है आज से।
पंजाब में खून खराबा हो सकता है,
आखिर धर्म की इज्जत का सवाल है।
असम में भी मारे गये हैं कुछ लोग आज,
वो हिन्दी बोलते थे।
राजस्थान सुलग रहा है.....।
......आज दिल्ली बंद है।
दो बस जला दी गयी हैं सवेरे-सवेरे,
दो आदमी भी चौराहे पर....
दो पुलिस वाले..
दो गुज्जर..
दो मीणा..
दो ब्राह्मण..
दो जाट..
दो हिन्दी भाषी..
दो.
दो..
दो...
सब माँग रहे हैं कुछ-कुछ।
किसी को जमीन चाहिये,
किसी को सत्ता,
किसी को नौकरी,
और किसी को रोटी।
हर चीज मिलेगी।
रूस की क्रांति की तरह,
जब मर जायेगी आधे से ज्यादा आबादी
महान होकर...क्रांति के नाम पर।
फिर सब मरघट आबाद हो जाऐंगें।
वहाँ किसी की दुनाली,
किसी की लाठी,
किसी के फरसे,
और कहीं कहीं बिना गले में लटकाये कुछ टायर जलाए जायेंगे।
तब मिटेंगें ये हथियार,
ये वार।
ऐ मेरी अगली पीढी,
माफ कर देना मुझे।
मैं जल्द मर जाऊँगा,
किसी न किसी आंदोलन की खातिर।
बिना कुछ किये तुम्हारे लिये।
पर तुम्हें नई दुनिया बनानी है।
जहाँ सब इंसान रहना,
तब मुझे याद मत करना मेरे बेटे।
भुला देना मेरी हर बात,
याद,
इतिहास,
मुझे याद करोगे तो याद आयेगी
मेरी जात... मेरी औकात...17%,... 27%....
या फिर मुझे सामान्य करार देना।
मेरी हर तलवार का हिसाब लेना।
फिर गालियाँ देना मुझे,
थूकना मेरे चित्र पर,
दशहरे पर जलाना मेरा पुतला।
पर जला देना सारी नफरत, मेरे साथ।
कुछ मत रखना संजोकर विरासत में,
क्योंकि मैनें कुछ नहीं छोडा है तुम्हारे लिये।
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया देवेश जी। आपकी रचना ने मुझे झकझोरकर रख दिया है।

    मुझे याद करोगे तो याद आयेगी
    मेरी जात... मेरी औकात...17%,... 27%....
    या फिर मुझे सामान्य करार देना।
    मेरी हर तलवार का हिसाब लेना।
    फिर गालियाँ देना मुझे,
    थूकना मेरे चित्र पर,
    दशहरे पर जलाना मेरा पुतला।
    पर जला देना सारी नफरत, मेरे साथ।
    कुछ मत रखना संजोकर विरासत में,
    क्योंकि मैनें कुछ नहीं छोडा है तुम्हारे लिये।


    क्या कहूँ। मुझे शब्द नहीं मिल रहे हैं।
    एक मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई स्वीकारें।

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  3. "क्योकि मैने कुछ नही छोडा है तुम्हारे लिये॰॰॰॰॰॰॰"

    प्रतिशत मे बातें करते हुये आप बहुत कुछ कह गये ।
    मैं तो सिर्फ राजस्थान की बात कर रहा था, समग्र हिन्दुस्तान को कहीं पीछे, बहुत पीछे भूल गया॰॰॰ बौडम जो ठहरा ।
    आपने जो शब्द कहे , वो सही मायनो में "आज के हिन्दुस्तानी" का बखान करते है॰॰॰वो ,जो अपने बच्चों के लिये सिर्फ नफरत छोड कर जाना चाहते है ।
    झकझोरती रचना के लिये साधुवाद ।

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  4. धन्यवाद देवेश जी ,
    झकझोंड. डाला आपकी इस रचना ने ....।
    स्थितिजन्य भावों का इस नंगे सौंदर्य के साथ चित्रण ..... वीभत्स तो लगती है , पर घृणा नही पैदा करती ..... हाँ , कुछ सोंचने पर जरूर विवश करती है ।

    पर आप कभी तो काफी-हाउस के बुद्धिजीवियों की तरह चुस्कियों में निर्विकल्पता का मजा लेते दिख रहें हैं , तो कभी अपने पुराने दार्शनिकों के नैराश्य की लकीर पर चलते नजर आ रहे हैं ।
    फिर भी नई पौध को आपका संदेश अच्छा लगा -

    "पर तुम्हें नई दुनिया बनानी है।
    जहाँ सब इंसान रहना,
    तब मुझे याद मत करना मेरे बेटे।
    भुला देना मेरी हर बात,
    याद,
    इतिहास,"

    श्रवण

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  5. रचना का उद्देश्य पाठक के मन को झकझोरना होता है जो आप की रचना बखुबी कर रही है , आज हर कोई आंदोलन करने मे व्यस्थ है और सारा देश सुलगा रहे है अपने स्वार्थ के लिये , शायद आप की रचना कुछ ज्ञान दे पाये इन पागलो को |

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  6. अाप इतने कम समय में इतनी अचछी रचानएे कैसे िलख लेते है रचानाकार का मैन उदेषय जाे है अाप ने अचछे 'दाे मे ॉयकत fकया है

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  7. devesh ji bahut badhiya aap ki baat mere dil tak choo gayi or mere jazbaton ko jhakjor diya

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  8. देवेश तुम्हारा लेखन बहुत सशक्त है तुम्हारी कविता जिस भी विशय को लेकर हो दिल को छू लेने वाली होती हो...वो चाहे बचपन की यादें हो या सावन की पहली बारीश जैसे रोमांटिक या फ़िर देश की बिगडी़ हालत पर..बहुत-बहुत बधाई...बहुत सुन्दर झकझोर कर रख देती है तुम्हरी ये कविता...

    शायद तुम्हारी आवाज सैंकडो लोगो के दिल को समझा पाये और हमारे प्यारे देश को बचा पाये...मेरी शुभकामनाएँ...

    सुनीता(शानू)

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  9. हर चीज मिलेगी।
    रूस की क्रांति की तरह,
    जब मर जायेगी आधे से ज्यादा आबादी
    महान होकर...क्रांति के नाम पर।
    फिर सब मरघट आबाद हो जाऐंगें।

    मुझे याद करोगे तो याद आयेगी
    मेरी जात... मेरी औकात...17%,... 27%....
    या फिर मुझे सामान्य करार देना।
    मेरी हर तलवार का हिसाब लेना।
    फिर गालियाँ देना मुझे,
    थूकना मेरे चित्र पर,
    दशहरे पर जलाना मेरा पुतला।
    पर जला देना सारी नफरत, मेरे साथ।
    कुछ मत रखना संजोकर विरासत में,
    क्योंकि मैनें कुछ नहीं छोडा है तुम्हारे लिये।

    देवेश इसे कहते हैं कविता, जो समीक्षा के लिये नहीं है, केवल महसूस करने के लिये है.....तुमने बेहद संवेदित कर दिया।

    *** राजीव रंजन प्रसाद

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  10. बहुत अच्छी कविता, सच से सराबोर ।
    घुघूती बासूती

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  13. आपकी कविता बेहद अच्छी है और प्रेरणादायक है...

    आदित्य

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  14. देवेश भैया आप बहुत अच्छा लिखते है और कविता सुनाते भी बहुत अच्छा है...

    अक्षय

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