तुझसे जब मेरी कोई बात चलती है,
तू मुझे मुझसे भी बेहतर समझती है!
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दर्द ओ गम पर,मैं मरहम लगाता गया।
तू सुनती रही,गुनगुनाता गया।
मुझको नाजुक सी खुशियाँ,हमेशा से थीं.
मैं ही उन पर, परदे लगाता गया।
चूमकर जो चखा,तेरे नूर को,
जितना तैरा मैं उतना समाता गया।
तेरी दौलत, मुहब्बत की बरसात है।
मुस्कुराते लवों पर क्या बात है ?
मुझको कह दे,जो कुछ है दिल में चला।
कहीं फिर ये मौसम,चला जाये ना।
मेरी हर छुअन,अब अमानत तेरी,
पास आ करवटों में समाता गया।
इस उनींदी पलक में है कोई बसा,
मुस्कुराहट में भी होता है नशा।
ये बातें, ये रातें,बडी हैं नयी,
अब तो डर भी नहीं खोने का कहीं,
बिन कहे मैं कहानी सुनाता गया।
तू सुनती रही,गुनगुनाता गया।
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देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410361798