25/7/08

राधा कैसे न जले- 8

वादियां मेरी आवारगी की कहानी की पिछली किश्तें पढ़ने के लिये यहां क्लिक करें- वादियां मेरी आवारगी की कहानी-I,II,III,IV,V,VI,VII
इंसान, वक्त, युग, मन और जज्बात कब और कैसे बदलते हैं ये भी बिल्कुल अबूझ सी पहेली है... बिल्कुल देव और बिट्टू के रिश्ते की तरह... और बिल्कुल म्यार के पहाड़ की तरह... देहरादून के पास ही है टपकेश्वर महादेव मंदिर... रविवार की छुट्टी होती तो देव का सवेरा यहां बीतता और शाम गांधी मैदान में... इंदू किसी इतिहासकार की तरह बताती उत्तराखंड की राजधानी के गौरवशाली इतिहास के बारे में... उसकी बातें सुनकर देव को आश्चर्य भी होता और मज़ा भी आता... आश्चर्य इसलिये कि छुटपन से ही आसाम के बोर्डिंग में पली-बढ़ी लड़की को यहां के बारे में इतनी ज़मीनी जानकारी किसने दी... और मज़ा इसलिये आता कि वो उसे वहां से जुड़ी पौराणिक कहानियां उसे ऐसे सुनाती थी जैसे वहां की टूरिस्ट गाइड हो... एक बार टपकेश्वर महादेव के दर्शन किये तो एक अनकही सी हामी हो गई कि इतवार की हर सुबह यहीं बीतेगी... दिन भर वहीं झगड़ते... बातें करते... समझते... समझाते और शाम होते वापस आ जाते... गुफा के भीतर भगवान भोलेनाथ के पिंडी दर्शन करने के बाद, सिर पर पल्लू रखे इंदू देव को प्रसाद देती और देव चुपचाप दोनों हाथ फैला देता... देव को कोई भरोसा नहीं था भगवान के अस्तित्व पर... घर से निकला तो देव पूरी तरह नास्तिक हो गया था... पर इसे देव भूमि का जादू कहें या बिट्टू का असर... नास्तिक देव इस जगह आया तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि भोले बाबा के दर्शन नहीं किये हों...


चाहें तब जब वो बिट्टू के साथ था, या तब जब बिट्टू उसके लिए एक कहानी बन गई... खैर उस वक्त इंदू देव की बिट्टू के साथ साथ टूरिस्ट गाइड भी थी... मंदिर के पीछे घाट की सीड़ियों पर बैठकर उथली नदी में पैर डाले इंदू बोली... पता है देव देहरादून का पुराना नाम द्रोणाश्रम था और द्वापर युग में पांडवों तथा कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य यहां तपस्या के लिए आये थे... उन्होंने यहीं, इसी गुफा में कठोर तपस्या की थी... और तब भोलेनाथ ने स्वयं उन्हें दर्शन दिये थे... तभी से इस मंदिर का नाम तपकेश्वर महादेव हो गया... इंदू की ये मायावी सी बातें देव की समझ में तो नहीं आती थीं पर उसके मुंह से कहानी की तरह सुनने में मज़ा खूब आता था... उथले पानी में छोटी छोटी मछलियां उनके पैरों के इर्द- गिर्द इकठ्ठी हो जाती तो देव पैर हटा लेता... पर इंदू के ठंडे पानी में पैर डाले रहती...
अरे मेरे बुद्दू पायलेट... अगर इस दुनिया में जब तक आप किसी को कोई नुकसान न पहुंचाओ, तब तक कोई किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता... उसकी इस बात को सुनकर देव पहाड़ी नदी के पानी में दोबारा पैर तो डाल देता पर उसकी नादानी पर हंसी खूब आती... घर से इतनी दूर दुनियादारी देखने के बाद भी उसकी ये बात वास्तव में नादानी ही लगती थी... देव कभी ज्यादा नहीं बोलता था... उसे बस सुनने में मज़ा आता था... इंदू बोलती रहती और देव मजे से सुनता रहता... ये वो दिन थे जब किसी बात पर किसी का कोई झगड़ा नहीं होता था... सच कहूं ऐसी कोई बात ही नहीं होती थी, जिसमें झगड़े की कोई गुंजाइश बचे... जब वो छोटी मछलियां पैरों से टकराने लगी तो देव बोला... बिट्टू ये पानी गन्दा हो गया है... शायद... बात में छिपी बात से बेफिक्र इंदू फिर शुरू हो जाती... हां, सो तो है... इंदू ने सहमति जता दी... लेकिन फिर चहकी और बोली... देव जानते हो, इस नदी में कभी दूध बहता था... इससे भी एक कहानी जुड़ी हुई है... एक बार द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को बहुत भूख लगी और उनसे वो दूध की जिद करने लगा... द्रोणाचार्य तो सब कुछ छोड़कर पहाड़ पर तपस्या करने आ गये थे... वो उसके लिए दूध का इंतजाम नहीं कर पाये... पर अश्वत्थामा भी जिद का पक्का था... वो भी अपने पिता के साथ तपस्या करने लगा... भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर यहां दूध की नदी बहा दी... पर कलयुग में ये नदी सूख गई और इसमें बरसाती पानी बहने लगा... पर ये गन्दगी तो यहां आये लोगों ने फैला कर रखी है... दुनिया भर से यहां दर्शन करने आते हैं, और यहां पर फैला देते हैं गंदगी... इसीलिए देव मुझे भीड़ बिल्कुल भी पसंद नहीं है... पर आजकल तो जहां देखो वहां आदमी ही आदमी... हर तरफ भीड़ भरी हुई है...
क्यों तुम्हें आदमी पसंद नहीं हैं... देव ने पूछा...
इंदू देव की आंखों में झांकी और बोली- नहीं... मुझे खामोशी पसंद है... पर तुम्हारे साथ...
फिर तो हो गया... मेरे साथ तुम कभी खामोश रहती हो... जब देखो तब पक पक पक पक...
दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े... पानी की मछलियां अब देव को डरा नहीं रही थी... अब गुदगुदी हो रही थी....
जारी है...
देवेश वशिष्ठ खबरी
9811852336