7/6/07

फिर बचेगा क्या......?


सोचता हूँ,
खुरच कर मिटा दूँ
उस रात के निशां,
अपने जिस्म से।
हटा दूँ सारे पैबंद,
तेरे नाम के-
अपनी हर कविता से।
तोड दूँ वो हर कडी,
जो भेज देती है वहीं।
अब छोड भी दूँ तेरा साथ
तेरे जाने के बाद।
एक वो सादा सा चेहरा,
जी तलक जो जा छिपा है,
सोचता हूँ ढूँढ लाऊँ,
और दरवाजे चढा दूँ।
सोचता हूँ अब फैंक भी दूँ
बाल जो उलझे पडे़ हैं,
कंघी में ।
कुछ चूडियों के टुकडे
संभाले बैठा हूँ अब तक।
तुम्हैं याद है, जब जोर से
मैंने तुम्हारी कलाई पकडी थी।
इतनी जोर से कि....
और वो गुड्डा तुम्हारा...
मेरे पास है,
वो कॉफी का कप,
वो बिस्किट का रैपर,
तेरी छुई हर चीज मेरे पास है।
सोचता हूँ, सब हटा दूँ।
पर फिर बचेगा क्या......?
'देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336
(दिल्ली)

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहरे भाव हैं, देवेश भाई.!!

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  2. भाई खबरी जी,
    प्यार की तो यही दौलत है,
    कुछ खत, कुछ यादें, कोई सूखा हुआ फ़ूल और बाकी का जिक्र आप ने अपनी कविता में किया है..
    सही लिखा है कि यह सब खो गया तो फिर बचेगा क्या ?
    बधायी

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  3. देवेश भैया आप बहुत अच्छा लिखते हैं। मै भी आपके जैसा लिखूँगा...:)

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  4. "मेरी सारी कल्पनायें उस समय ध्वँस हुई जाती है,
    जब ज़माने की आंधियाँ मेरा आशियां मिटा जाती है ।
    पानी की लहरों सा उभरा था प्यार तेरा मेरा,
    हादसा ये होता है, कि हरदम दूरियाँ बढती जाती है ।"

    टूटी चूडियाँ भी सहेज कर रखना॰॰॰॰॰ प्रेम की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है ।
    बाकी और क्या क्या सहेज कर रखा होता है, भाई मोहिन्दर बता चुके है ।
    उपर जो पँक्तियाँ लिखी है, यकीन मानिये, आपकी कविता पढकर रची है ।
    आपका बहुत बहुत आभार ।

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