गुम गया हूँ मैं,
मिट गये हैं-
धुँधले अक्स,
बातें,
यादें,
पीङाऐं।
गुम गयीं हैं सारी स्मृतियाँ,
और गुम हो गया है भविष्य भी,
तुम्हारे साथ,
गुम गया हूँ मैं।
अब कल्पना नहीं है,
न समय है,
न आकाश।
कुछ नहीं बचा है मेरे लिये।
खो दिया है सब कुछ ।
अब हाथ पैर नहीं पटकता,
किसी चमकी को देखकर,
चीखता नहीं हूँ चोट खाकर,
चुप हो गया हूँ मैं।
शायद मर गया हूँ मैं।
आ लगा हूँ निर्जन द्वीप पर,
पर वहाँ तुम रहते हो।
होठों के पार...
इस बार तुम ज्यादा पास हो,
भीतर तक...
बिल्कुल सक्रिय।
मैं समाधि में हूँ....।
श्श्श्श....... तुम भी गुम जाओ,
मेरे साथ।
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410173698
खबरीजी,पता नहीं आपको खबर हो या नहीं, अपना ताल्लुक भी आगरा से है। वहां एक कालेज हुआ करता है, सेंट जोन्स कालेज, वहां से पढ़ाई की है। जनमत में अब आपको देखूंगा।
जवाब देंहटाएंआलोक पुराणिक
9810018799
अब हाथ पैर नहीं पटकता,
जवाब देंहटाएंकिसी चमकी को देखकर,
चीखता नहीं हूँ चोट खाकर,
चुप हो गया हूँ मैं।
शायद मर गया हूँ मैं।
Wah janab yeh lines to bahut khuch keh jati hai...
Bahut bahut shukriya is pyari kavita ke liye...
shashank
Dear brother
जवाब देंहटाएंvery good keep it up ..........
अब हाथ पैर नहीं पटकता,
जवाब देंहटाएंकिसी चमकी को देखकर,
चीखता नहीं हूँ चोट खाकर,
चुप हो गया हूँ मैं।
शायद मर गया हूँ मैं।
wah....
bahut khoob....
shukriya...
baht pyaaree kavita hai..
खबरी जी,बहुत गंभीर बात कह गये आप तो
जवाब देंहटाएंकैसे?
मैं भी समाधि में हूँ
आभार देना चाहूँगा
सस्नेह
गौरव शुक्ल
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमैं समाधि में हूँ....।
जवाब देंहटाएंश्श्श्श....... तुम भी गुम जाओ,
मेरे साथ।
कविता को बेहतर तारीके से व्य्क्त करता है. आपकी इस सुन्दर कविता के लिये आपको बधाई.
सुन्दर लिखा है...मन के आक्रोश को कागज पर उतारन सहज नही होता....आपने कर दिखाया है
जवाब देंहटाएंबधायी
Insaan gum ho sakta hai....
जवाब देंहटाएंcharitra ghum nahi ho sakta....
aapme charitrik visheshta hai...isliye
AAP MAR NAHI SAKTE...
main samajh nahi paa raha ki aapko dhanyawad/shabashi du, ya kuch aur kahu....
jis din aapse baat hui,main baya nahi kar sakta ki mujhe kitni khushi hui....
jaisa ki bataya tha ki khud bhi thora bahut likh leta hu,so aap mere agraj hai aur hum aapse sikhne ko taiyaar rehte hai....
par bhaiya, aapko humesha "dukh/pida" likhte hi dekha hai...
mana ki duniya me bahut dukh hai,to kya hum is dukh ko dekhte hue marte rahe?????
chota baccha hu,itni badi baat kehne ka haq nahi rakhta,par bhaiya hum aapse "khushi" chahte hai,aapse khushi sikhna chahte hai....
aasha hai aap mujhe nirash nahi karenge....
jyada bol gaya hu to, kshmaprarthi hu....
manu,udaipur
देवेश जी आपके लिये क्या कहूं बस ऐसी ही कविताएं पढ़वाते रहिये
जवाब देंहटाएंबस यहीं तो मिलन है ... गोरख को सुनिये " मरो है जोगी मरो , मरो मरण है मीठा " ... क्योंकि जब तक पुराना मर नही जाता नया जनम नही ले सकता॥ अभी मंजिलें और भी है ...
जवाब देंहटाएंदेवेश जी..
जवाब देंहटाएंआपकी कविताये बहुत स्तरीय होती हैं। आनंद आ गया पढ कर। बधाई\
*** राजीव रंजन प्रसाद
शैलेश जी की आरकुट से आपका लिंक मिला,
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छे शब्दों में आपने कविता प्रस्तुत की है, इसकी प्रशंसा के लिये शब्दों को खोजना कठिन है।
अच्छी कविता को लिये बधाई।
देवेशजी,
जवाब देंहटाएंआपने मन की छटपटाहट को बहुत ही खूबसूरती से कविता में पिरोया है, आपकी कविता सही जगह पर चोट कर रही है, कल व्यस्तता के चलते आपकी यह कविता नहीं पढ़ पाया था, मुझे खेद है।
बधाई!!!
आप ही की रचना को समर्पित कुछ पक्तियां॰॰॰॰॰
जवाब देंहटाएं"दिल जल रहा है, बस धुआं नही है।
इस दर्द का हमदर्द यहां नही है।
मोम की तरह पिघल रहा हू दोस्त,
कल को तुम कहोगे कि मेरा निशां नही है॰॰॰॰॰॰"
०९८२९०३२४९१ आर्यमनु
bhook par aetbaar mat karna
जवाब देंहटाएंtum parindy shikaar mat karna
shaam udasi ka isteaara hai
shaah ko ikht~yaar mat karna
khud j~lana koee dia ghar meiN
dhoop par inhesaar mat karna
kirchiaaN ungliaaN ch~ba leiN gi
zakhm dil k shumaar mat karna
un se milty hi sub b~tady gi
aankh par aetbaar mat karna
maiN bhi kha~wboN k safar pehnooN ga
tum bhi taary shumaar mat karna
kis liye ungliaN j~laty ho
kaha tou tha k pyar mat karna
theek hai ishq kar lia sahab
ye kh~ta baar baar mat karna.