मुझे यकीन है,
एक दिन आएगा उसका खत,
बजेगी घन्टी मेरे मोबाइल की,
या फिर स्कैप
औरकुट पर॰॰॰॰
या फिर कहेगी
अपने दिल की बात,
अपने किसी दोस्त को,
और चुपचाप बता देगा वो मुझे,
शायद...।
एक दिन डाँटेगी वो मुझे,
कितने सुस्त हो,
॰॰॰ पागल। मेरी तरह।
और तब डबडब आखों में
ढूँढ लूँगा मैं खुद को।
एक दिन बुलायेगी वो मुझको,
बस करो॰॰॰ मैं समझती हूँ।
पर क्या सब कुछ कहना जरुरी होता है॰॰?
उसका नाज़ुक और पसीजा़ हुआ हाथ,
रख लूँगा दिल पर,
तब रोउँगा थोडी देर॰॰॰॰ उसकी गोद मैं।
वो आये, न आये,
उसका खत जरुर आयेगा एक दिन,
ऑरकुट पर॰॰॰
या फोन पर,
या॰॰॰
मुझे यकीन है।
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410361798
स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में. निरंतर लिखें. शुभकामना.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी सारी रचनायें एक बार में पढने से खुद को रोक ना पायी.. सहजता से बिना कोई लाग-लपेट के आप बहुत कुछ कह गये हर बार.. इस भाग-दौङ की ज़िदगी और career, competition के युग का सही प्र्भाव दिख्ता है.. यही भावनायें है हमारे युवा मन में.. वो दिन गये जब नायक-नायिका कबूतर से संदेश भेजते थे और झूले पर बैठे घंटो ईंतज़ार करते थे.. अब वक्त कहां है यादों मे बहने का वो साथ चलती हैं हर पल.. भाव बहुत आसानी से समझ आते हैं आपके और छू जाते हैं..
जवाब देंहटाएंWhat necessary phrase... super, a brilliant idea
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