सबर करो,
मैं धीरे धीरे ऊपर आउँगा।
धीरे धीरे,
पायदान मैं, चढता जाऊँगा।
नीचे वाली सीढी पर हूँ,
पर मत घबराओ,
दौडने वालों की हाँफन से पहले आउँगा।
सबर करो मैं धीरे धीरे ऊपर आउँगा।
मीत मेरे तुम मत रुकना पर,
मैं कुछ धीमा हूँ।
दौड तुम्हारी तुम्हैं थका दे,
तब मैं आऊँगा।
अपनी गोद में तुम्हैं उठाकर,
फिर बढ जाऊँगा।
मेरा साथ ना देना चाहो,
कोई जोर नहीं।
मंजिल तक पर तुम्हैं साधकर,
मैं ले जाऊँगा,
लेकिन मुझको मंजिल से भी आगे जाना है,
साथ तुम्हारे चलूँगा,
या फिर तन्हा जाऊँगा।
सबर करो मैं धीरे धीरे ऊपर आउँगा।
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410361798
अवश्य ऊपर आओ, सफ़लता की सीढ़ियाँ चढ़ते जाओ। अच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
शुभकामनायें. बस इसी आत्मविश्वास को बनाये रखो, जरुर ऊपर आओगे.
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