21/4/09

राष्ट्रपति भवन में कूड़ा डालना तथा पेशाब करना सख्त मना है...


जी हां... बात कुछ अटपटी लग सकती है... पर यकीन जानिये ये बात मैंने बिल्कुल बिना मोड़े-तोड़े और बिना शब्दों से खेले लिखी है... राष्ट्रपति भवन में वास्तव में कूड़ा डालने पर प्रतिबंध लगा हुआ है... और तो और कोई भारतीय सज्जन वहां दीवार की ओट लेकर या कोई कोना पकड़कर पेशाब भी नहीं कर सकता... मैं मजाक नहीं कर रहा हूं... बल्कि जो देखकर आया हूं, वही बता रहा हूं... एक बात और ये बात विदेशियों पर लागू नहीं होती... खतरा सिर्फ हिंदुस्तानियों से है इसलिए ये आदेश भी सिर्फ उन्हीं के लिए है... दरअसल हुआ यूं कि मैं अपने एक मित्र के साथ तफरी करने यूं ही राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गया... और धूप कड़ी थी इसलिए मुख्य परिसर के ही अंदर किसी पेड़ की छांह लेने का मन किया... लेकिन देश के सबसे संवेदनशील स्थान पर हर जगह अपनी मन मर्जी तो चलाई नहीं जा सकती... इसलिए पूरे सम्मान से सभी सरकारी आदेशों का पालन करना भी जरूरी है... राष्ट्रपति भवन में एक ऐसे ही आदेश का बोर्ड दिखाई दिया... उसका मजमून यही था जो मैंने अक्षरश: इस पोस्ट के ऊपर लिख दिया है... ये आदेश मुझे कुछ अटपटा नहीं लगा... क्योंकि जैसे देश भर की दीवारें हकीम उसमानी या डॉक्टर शेखों के इलाज की गारंटियों से पटे रहते हैं... वैसे ही हमारी प्यारी दिल्ली में ‘यहां पेशाब करना मना है’ का आदेश कई क्रियेटिविटियों से गुजरता हुआ गधे के पूत यहां मत ... तक हो जाता है. कई जगह पर्यावरण, स्वास्थ्य और समाज के प्रति जागरूक लोग व्यक्तिगत पहल करते हुए दीवारों पर ये नेक नारे लिखते हैं तो कहीं कहीं कुछ बेहद समाज सेवी संस्थाएं ये काम करती हैं... लेकिन दिल्ली प्रशासन और सरकार को भी इस राष्ट्रीय परेशानी का इल्म है, और जगह जगह उसने इस काम में खुद भी भागीदारी की है... दिल्ली में लगभग हर चौराहे पर साफ सुथरे शौचालय हैं जो प्राय: साफ सुथरे ही बने रहते हैं... नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को छोड़ दें तो मैंने उनमें आते जाते लोग कम ही देखे हैं... प्रकृति-प्रेमी और खुली हवा में जीने की इच्छा रखने वाले हम खुले में ही करने के शौकीन भी हैं... लेकिन खुले खेल का ये डर राष्ट्रपति भवन तक में है ये मुझे नहीं पता था... अब ये भी जान लीजिये कि ये आदेश आया कहां से... रायसीना हिल्स को समतल करके वहां भव्य भवन तो अंग्रेज बना गये लेकिन वहां कूड़ा फेंकना मना है और गधे के पूत यहां मत ... लिखना वो भूल गए... अंग्रेजों की इस मिस्टेक को सुधारा है लोक निर्माण विभाग ने... वैसे प्रेशर वाली बात तो ठीक है लेकिन सरकार वाकिफ है कि हम राष्ट्रपति भवन तक में जाकर कूड़ा फेंकने तक की हिम्मत रखते हैं... एक बात और... ये आदेश सिर्फ हम हिन्दुस्तानियों के लिए ही है... मेहमानों को इससे छूट मिली हुई है... मेरा यकीन न हो तो फोटो को दोबारा ध्यान से देखें... दिल्ली में लगे अमूमन सभी आदेश हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में होते हैं... लेकिन इस महत्वपूर्ण जगह पर ये महत्वपूर्ण आदेश सिर्फ हिंदी में ही है... मैं समझता हूं इतना काफी है... आप समझ गए होंगे कि राष्ट्रपति भवन में कूड़ा फेंकना और पेशाब करना सख्त मना है...


देवेश वशिष्ठ खबरी

+91-9953717705

19/4/09

तुम खट्टी होगी...


तुम खट्टी होगी...
पर सच्ची होगी...
अभी छौंक रही होगी हरी चिरी मिर्चें...
खट्टे करौंदों के साथ...
या कच्ची आमी के...
या नींबू के...
या ना भी शायद...

नाप रही होगी अपना कंधा...
बाबू जी के कंधे से...
या भाई से...
और एड़ियों के बल खड़ी तुम्हारी बेईमानी
बड़ा रही होगी तुम्हारे पिता की चिंता...

तुम भी बतियाती होगी छत पर चढ़ चढ़
अपने किसी प्यारे से...
और रात में कर लेती होगी फोन साइलेंट...
कि मैसेज की कोई आवाज पता न चल जाए किसी को...
तुम्हें भी है ना...
ना सोने की आदत...
मेरी तरह...
या शायद तुम सोती होगी छककर... बिना मुश्किल के...
जब आना...
मुझे भी सुलाना...

गणित से डरती होगी ना तुम...
जैसे मैं अंग्रेजी से...
या नहीं भी शायद...
तुम लड़ती होगी अपनी मम्मी से...
पापा-भैया से भी,कभी कभी...
मेरी तरह...
पर तुम्हें आता होगा मनाना...
मुझे नहीं आता...
बताना...
जब आना...

तुम खट्टी होगी...
चोरी से फ्रिज से निकालकर
मीठा खाने में तुम्हें भी मजा आता होगा ना
तुम भी बिस्किट को पानी में डुबोकर खाती होगी...
जैसे मैं...
या शायद तुम्हें आता होगा सलीका खाने का...
मुझे भी सिखाना...
जब आना...

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9953717705

9/4/09

नीली छांह...


नीली स्याही... नीला कागज...
नीला बादल... नीला दु:ख...
नीली आंखों वाली की हर याद बहुत नीली है...

नीला सरगम... नीला पंचम...
नीली बातें... नीला चुप...
नीले-नीले जीवन की हर सांस बहुत नीली है...

लिख-लिख कर कागज पर सपने,
आग लगाए हाथों से...
जलते नीले सपनों की ये आग बहुत नीली है...

अब सूरज का बंद हुआ है,
मेरे घर आना जाना...
और तभी से इस कमरे की रात बहुत नीली है...

नीले पत्ते... नीली खुशबू...
नीली मिट्टी... नीली छांह...
मेरे रोपे हर पौधे की शाख बहुत नीली है...

नीला हंसना... नीला रोना...
नीला नीला कह देना...
अक्षय-अक्षय तेरी-मेरी, जात बहुत नीली है...

देवेश वशिष्ठ खबरी...

8/4/09

तुम गीत हो...


बिट्टू, तुम गीत हो...
तुम्हें मैंने नहीं लिखा,
खुद लिख गए तुम,
हर्फ-हर्फ अपने आप...
मैंने तुम्हें नहीं गाया,
तुम खुद रहे जुबान पर,
मीठी-मीठी लोरी से...
मैं बेसुरा था,
तुम खुद बन गए सरगम,
और निकलते रहे मेरी जुबान से...
तुम गीत हो,
वियोग का...
जिसने मुझे सिखाया,
अहसास ऐसे किया जाता है...
संयोग का,
जिसने बताया कि जीया ऐसे जाता है...
तुम एक प्यार भरा नगमा हो,
जिसे मैंने अपनी सबसे ऊंची आवाज में गाया है...
तुम गीत हो,
जिसे सबसे आसानी से गाया जा सकता है...
तुम प्रीत हो, जिसे हमेशा-हमेशा निभाया जा सकता है...
तुम सौगंध हो,
जिसके लिए मुझे कभी आडम्बर नहीं करना पड़ा...
तुम जीत हो,
जिसके लिए मुझे कभी नहीं लड़ना पड़ा...
तुम गीत हो उत्साह का,
जिसने मुझे हमेशा हौसला दिया है...
कि रुकना नहीं है,
हारना नहीं है...
जीना है
और जीत लाना है तुम्हें...
तुम गीत हो, गाना है तुम्हें...

देवेश वशिष्ठ खबरी