अब खुश हूँ ।
अब तक सब कुछ एकतरफा था॰॰॰
अब भी है॰॰॰
पर सुबह तुम्हारा सपना आया,
सुबह-सुबह॰॰॰॰।
घर में मेरी मम्मी है॰॰॰
मैं हूँ॰॰॰
तुम भी हो ।
वैसी ही जैसी तब थी।
वही पीली और लाल सलवार,
और दूध से कुछ साफ तुम॰॰॰॰
॰॰॰॰मुझे पता है, रूठ गयी थी।
॰॰॰॰॰मुझे पता है, गलती थी।
सच मानो अब भी मेरे पुराने दोस्त फोन करते हैं,
और पूछते हैं,
॰॰॰कैसी है तेरी इन्सपरेशन ?
नये दोस्त भी जानते हैं तुम्हें।
तुम्हारी तस्वीर देखी है उन्होंने कम्प्यूटर के डेस्टोप पर॰॰॰
पूछते हैं कहाँ है?॰॰॰ कौन है ?
मैं मुस्काता हूँ, और विजयी भाव से कहता हूँ,
ये है मेरा पहला प्यार।
जिसकी यादों ने कभी परेशान नहीं किया।
हर वक्त याद रहती है ये मेरी इन्सपरेशन बनकर॰॰॰
ये मेरा पहला प्यार है, एकतरफा।
पर आज सुबह-सुबह तुम आयीं थीं,
कुछ कहने॰॰॰
॰॰॰॰ अब खुश हूँ ।
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410361798
bahut acche devesh bhai
जवाब देंहटाएंaapka chittha jagat mein swagat hai..
हार्दिक स्वागत है आपका देवेश जी। आपने यह पोस्ट १० फरवरी को लिखी पर हमें आज पता चला। क्या आपने नारद पर पंजीकरण नहीं कराया।
जवाब देंहटाएंनारदमुनि से आशीर्वाद लेना न भूलें। इस लिंक पर जाकर अपना चिट्ठा पंजीकृत करवा लें।
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बहुत अच्छी कविता थी। 'लेकिन इन्सपरेशन' की जगह 'प्रेरणा' ज्यादा जँचता।
श्रीश शर्मा 'ई-पंडित'
आप तो खुश हैं ही .. जिसके लिये लिखी है.. वो पढ्कर और खुश होगी.. यकीन मानिये.. :)
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