27/8/09

खोई हुई डायरियां नहीं मिलतीं... प्रेमिकाओं की तरह


डायरी नई है... किसी बात को कई हफ्ते बीत चुके हैं... किसी बात को शुरू होने में कई दिन हैं... हर लम्हा एक वक्त पुराना हो रहा है... अगला छण हर पल नया होना चाहता है... ऐसे में एक नई डायरी हाथ लगी है... कुछ लिखना चाहता हूं... काली स्याही से लिखूं... मेरी बात लिखूं... नीली स्याही से लिखूं... उसकी बात लिखूं... या अपनी बात काली से और उसकी नीली से... वैसे स्याही से क्या फर्क पड़ता है... फर्क तो लिखने से भी नहीं पड़ता... दीवाली वाले दिन मां कॉपियां मंगाती थीं... पिताजी पूजा करके उन पर रोली से स्वास्तिक बना देते थे... नई डायरी पर भी कुछ अच्छा लिखना चाहता हूं... तो पिताजी याद आ जाते हैं... नई डायरी से नई दोस्ती करना चाहता हूं... तो चाहता हूं कि नया बनकर मिलूं... पर पुरानी बातें जाती ही नहीं... लगता है कि जैसे सब नया खप गया है... सब नया खो दिया है... मुझे खूब जोर से रोने का मन करता है... ऐसा लग रहा है कि पुरानी डायरी से बेवफाई करूंगा... मुझे पूछने का मन कर रहा है कि आपको भी ऐसा ही दर्द होता है क्या पुराना कुछ खो जाने पर... कैसे दिन हैं ये... काम क्यों कर रहा हूं... सब चले गए हैं... फिर भी केबिन में क्यों जमा बैठा हूं... मैं किसका इंतजार करता रहता हूं यूं बैठा बैठा... खोई हुई डायरियां नहीं मिलतीं... प्रेमिकाओं की तरह

26/8/09

कॉन्ट्राडिक्शन-1


कई निगाहे हैं... उनमें में एक पुराने गुलदस्ते के सूखे गुलाब पर टिकी है... लेकिन एक वहां से हटकर किताबों की बेतरतीब अलमारी में कुछ ढूंढ रही है... इस निगाह को वो लावारिस खत नहीं मिल पा रहे हैं जो आवारगी के दौरान लिखे गए और वो बंजारे खत इन किताबों के हुजूम में कहीं छिपा दिये गए... अब ढूंढने से भी नहीं मिलते... बिस्तर पर कुछ गर्म सलवटें लेटी हैं... जिंदगी भर का आलस एक साथ अंगडाई ले रहा है... एक सलवट दूसरी को छू रही है... वो छुअन बहुत हसीन है...

अलाव है... आग है... सर्दी का मौसम है... हाथों की गुस्ताखी है... हाथ आग को चेहरा दिखा रहे हैं... एक शॉल में दुबकी दो जान बैठी हैं... एक के हाथ में पुरानी डायरी है... दूसरे के होठों पर प्यार के गीत हैं... बारिश हो के चुकी है... मौसम विज्ञानियों से बिना पूछे ही कोयले वाला बता गया है... कि बर्फ गिरेगी... बुरांश पर फूल नहीं आये हैं... बुरांश को न्यौता है... बर्फ नाज़ुक है... बुरांश पर झरने लगी है...

डायरी के पन्ने कई दिनों बाद उलटे हैं... हर पन्ने पर तारीख है... हर गीत में एक कहानी है... डायरी के पन्ने उड़ रहे हैं... शाल में दुबकी दो जान एक ही दिन में कई तारीखें पढ़ लेना चाहती हैं... आज की रात की कहानी फिर कभी गीत बनेगी... डायरी खुश है... जैसे आज के ही दिन के लिए सारे अर्से गीत बने थे...

एक जान को नींद आ रही है... वो दूसरी जान की गोद में लेट गई है... एक जान सो गई है... दूसरी सोना नहीं चाहती... आग को चेहरा दिखाता दूसरी जान का एक हाथ नर्म हो गया है... अब वो बालों में गुदगुदी कर रहा है... वो छुअन बहुत देर तक नहीं थकती... वो छुअन बहुत हसीन है...

बिस्तर की नर्म सलवटें अकेली हैं... नींद टूट गई है... चिपचिप है... उमस है... दिल्ली की गर्मी है... बिजली चली गई है... एसी बंद हो गया है... किताबें बेतरतीब हैं... एक निगाह फिर सूखा गुलाब देख रही है... दूसरी बेतरताब अलमारी पर अटकी है... एक पुरानी डायरी है... आग को चेहरा दिखा दिखाने वाले कठोर हाथों में आ गई है... गर्मी में पुरानी डायरी पंखा बन गई है... ज़ोर ज़ोर से हिल रही है... पंखे की तरह झल रही है... डायरी के पन्ने कई दिनों बाद उलटे हैं... हर पन्ने पर तारीख है... हर गीत में एक कहानी है... पन्ने जोर जोर से हवा में उड़ रहे हैं... हवा कर रहे हैं... डायरी से कुछ पन्ने रूखे फर्श पर गिर पड़े हैं... निगाहों की तलाश खत्म हो गई है... बंजारे खत मिल गए हैं... बेकारी का दौर है... दोपहर है... जिंदगी भर का आलस एक जान में भरा है...
इन दोपहरों की कहानी गीत नहीं बनती... खत वापस डायरी में ठूंस दिये गए हैं... डायरी फिर भर गई है...

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9952717705

25/8/09

एंकर का कोट


नमस्कार, मैं हूं राहुल शर्मा... और आप देख रहे हैं टेलीविजन इंडिया... इस वक्त की बड़ी खबर आ रही है आगरा के ताज महोत्सव से जहां भीषण आग लग गई है... आग में शिल्पियों के दो सौ से ज्यादा पांडाल जलकर खाक हो गए हैं... मौके पर दमकल की गाड़ियां पहुंच चुकी हैं... इस बीच खबर आ रही है कि कुछ लोग आग में फंसे हो सकते हैं... हमारे संवाददाता प्रशान्त कौशिक फोन लाईन पर हमसे जुड़ चुके हैं... प्रशांत क्या अपटेड है...?
असाइन्मेंट हैड आलोक श्रीवास्तव के चेहरे पर मुस्कान दौड़ रही थी... आउटपुट हैड शशिरंजन झा खुद पीसीआर संभाले हुए थे... ओवी पर शॉट आ गए हैं... जल्दी काटो... राहुल लाइव टॉस करो... हम सबसे पहले हादसे की सीधी तस्वीरें दिखा रहे हैं... खबर को बेचो... याद रखो खबर सबसे पहले हमने ब्रेक की है... शशिरंजन जी ने एंकर का टॉकबैक ऑन करके तमाम इंस्ट्रेक्शन एक सांस में दे मारे...
... और आपको सीधे लिए चलते हैं आगरा के ताजमहोत्सव में, जहां इस वक्त भयंकर आग लगी हुई है... इस वक्त आप अपने टेलीविजन स्क्रिन पर हादसे की पहली तस्वीरें देख रहे हैं... हम अपने दर्शकों को बता दें कि सबसे पहले ये खबर आप टेलीविजन इंडिया पर देख रहे हैं... और जैसा कि अभी हमारे संवाददाता प्रशान्त कौशिक बता रहे थे... आग में से चार शव निकाले जा चुके हैं... चारों शव इतनी बुरी तरह झुलस गए हैं कि उनकी शिनाख्त नहीं हो पा रही है... आग में शिल्पियों का तकरीबन एक करोड़ रुपये का माल जलकर खाक हो गया है... इस वक्त टेलीविजन स्क्रिन पर आप ताजमहोत्सव की आग की लाईव तस्वीरें देख रहे हैं... और हमारे साथ फोन लाइन पर जुड़ चुके हैं आगरा के एसएसपी जीपी निगम... निगम साहब, कैसे लगी ये आग? इतने बड़े जलसे के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं किये गए थे... ?
एंकर की आवाज में अचानक जोश आ गया था... आउटपुट हैड बार बार टॉक बैक ऑन करके उसे याद दिला रहे थे कि ये तस्वीरें सिर्फ उन्हीं के चैनल पर दिखाई जा रही हैं... और राहुल हर बार और जोर से ये बात दर्शकों के सामने दोहरा रहा था...
प्राइम टाइम खत्म हुआ... भई वाह... छा गए... खूब बिक गई खबर... मार्केट मार लिया आज तो... एक्सक्लूसिव का टैग लगा लगा कर चलाई खबर... वैल डन राहुल... वैल डन... राहुल की जान में अब जान पड़ी... आउटपुट हैड औऱ एडिटर इन चीफ ने उसकी पीठ ठोंकी थी...
अरे सर... आगरा तो मेरा घर है... उस शहर की हर बारीकी जानता हूं मैं... आपने देखा कि कैसे लपेटा एसएसपी को सुरक्षा इंतेजामों के मुद्दे पर... एंकर ने टाई ढीली की... मेकअप रिमूव किया... आज की मजदूरी पूरी हो गई थी...
सर, शायद आपका फोन आ रहा है... मेकअप आर्टिस्ट ने राहुल को इशारा किया... राहुल हमेशा की तरह आज भी शो के बाद फोन का साइलेंट मोड डीएक्टीवेट करना भूल गया था... उधर पिताजी की भर्राई आवाज थी... अनर्थ हो गया बेटा... अंजली बुरी तरह से झुलस गई है... एट्टी पर्सेंट बर्न थी, जब हॉस्पीटल ले गए...
फोन के उस पार से जैसे शहर भर के रोने की आवाज आ रही थी... एंकर के कंधे से कोट उतर चुका था... एक आम आदमी अपनी बहन के लिए रो रहा था...
देवेश वशिष्ठ ‘खबरी’
9953717705