29/3/07

होली वाटर

हर प्रतिमा का चरणामृत,
गुरुद्वारे का अमृत,
मस्जिद की आबोहयात,
और बडे वाले गिरजे का,
होली वाटर।
॰॰॰कुछ नहीं चखा मैंने।
पर वो दिन याद है
॰॰॰गुनगुना पानी लायीं थी तुम।
...जानू सर्दी हो गयी है तुम्हैं,
ठंडा पानी मत पीना,
प्लीज..
और खूब खयाल रखना अपना।
और मैं पागल,
बोला,
तुम हो ना,
मेरा खयाल रखने को।
अब पानी फीका लगता है,
बेरंगा॰॰॰बेस्वाद॰॰॰
पर वो दिन याद हैं,
जब पानी रंगीन हो जाता था,
तुम्हैं छूकर।
अब मेरे गाल का वो पिंपल ठीक हो गया है,
जुकाम भी नहीं है,
मौसम भी गरम है।
तुम आज भी मेरा खयाल रखती हो,
पर क्या जाना जरूरी था?
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410361798

3 टिप्‍पणियां:

  1. देवेश जी,

    पहली बात इस बात के लिए माफ़ करेंगे कि आपजैसे प्रतिभावान कवि को जानने से मैं आज तक वंचित था।

    और दूसरी बात कि बहुत सरल शब्दों में आपने कह दिया है कि-

    जब पानी रंगीन हो जाता था,
    तुम्हें छूकर।


    किसी दिन इत्मीनान से आपका पूरा ब्लॉग पढ़ूँगा।

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  2. बहुत अच्छे, लगे रहिए। भगवान आपकी इस कला का फल आपको जल्द देगा। यही दुआ करेंगे।

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  3. बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप. काफ़ी देर सोचता रहा कि आपकी किस कविता पर अपनी टिप्पड़ी लिखूँ (मैं धीरे धीरे ऊपर आउँगा, अब खुश हूँ और खूब डाँटा आज में चुनाव मुश्किल था), पर अंत में मैंने इसे चुना.

    अब कुछ सुझाव, फ़ार्मेटिंग पर थोड़ा और ध्यान दें. जैसे कुछ स्थानों पर ... की जगह ॰॰॰ का प्रयोग, कुछ कविताओं का बोल्ड फ़ोंट में होना आदि. मुझे यक़ीन है कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे.

    एक बार फिर से धन्यवाद इतनी अच्छी कविताएं हम तक पहुँचाने के लिए.

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