29/3/07

शायद चंदन की लकडी़ से तुम्हैं बनाया है।

चुन चुन कर नग
किस शिल्पी ने
तुम्हैं सजाया है।
शायद
चंदन की लकडी़ से
तुम्हैं बनाया है।
हवा बसंती
ठहर गयी है
तुम्हारे होठों पर ,
या फिर
सावन की मस्ती ने
तुम्हैं बुलाया है ?
गंगा में अर्पित पुष्पों सा
है मेरा जीवन,
श्रृध्दा ने ले
रंग सुनहरा
रुप बनाया है।
शीशे जैसे मन में दिखते
पावन कुछ बंधन,
या फिर बादल ने घूँघट में
चाँद छिपाया है।

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9410361798

7 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगा यहाँ आना…सुंदर कविता लिखा है…बधाई!!

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  2. सुन्दर कविता है ।
    घुघूती बासूती

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  3. devesh ji ,ada achi hain dil ki dastan batane ki ....

    main theatre person hoon ,likhe hue ho apna sharir aur atma dena mera pesha hain,kabhi-2 yad karte rahenge to khushi hogi kyu ki shayed humare aap jaise bahut kam hain dunia main ,her koi to MBA ki taiyari hi karta nazar aata hain,
    sandeep,

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  4. hi devesh bhai,
    i am raghvendra from agra (noida)....
    congratulation for good composing ...
    you are undoubtly nice writer.......
    keep it up dear devesh .

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