13/6/25

फिर से जाना होगा घर... इसी बात से लगता डर !


फिर से जाना होगा घर
इसी बात से लगता डर

किसी और ने चाल चली
हमें बता दिया 'मुख़बर'

खूब पता है इश्क नहीं
फिर भी करते आडंबर

कैसे कर लेते हो सब ?
100 में पूरे 100 नंबर

हर लम्हे में दिल मारा
कब थे हम इतने बर्बर ?

सौ शैतानों में 'इब्लीस'
बता रहे हैं 'पैगंबर'

अपना मन ही काला होगा
बाकी सब हैं 'श्वेतांबर'

ख़बरी बड़ा अकेला है
लेते रहना खोज ख़बर !

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'


आईने में जब भी देखा...


आईने में जब भी देखा
तू भी दिखा, डर भी दिखा,
मेरे जैसा ही कोई चेहरा
बार-बार मर भी दिखा ।

साथ-साथ तो चले हमेशा
राह अलग थी, सोचें भी
पूरा रस्ता ख़ामोशी थी
हर मोड़ पर असर दिखा।

बातें कम, हिसाब ज़्यादा
लम्हे सभी उधारी के,
एक घरौंदा, पर उस घर में
किराए जैसा दर दिखा।

दिन बँटते थे अखबारों में
रातें थक के सो जातीं,
सपनों में बस भीड़ रही
और नींदों में सफ़र दिखा।

मुस्कानों में मोल लगा था
जज़्बातों का वज़न हुआ,
हम जीते थे शर्तों पर
आवाज़ों में ज़हर दिखा।

वो रिश्ता जो प्यार कहाया
बोझ लगा है हर पल में,
तू भी था, मैं भी लौटा
मगर नहीं कोई 'घर' दिखा।

'खबरी' ने जब कलम उठाई
शब्द जले, पर बात न की
काग़ज़ पर बस राख बची थी
उसमें एक भंवर दिखा।

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'


रमता जोगी, बहता पानी... तेरी राम कहानी क्या ?


रमता जोगी, बहता पानी
तेरी राम कहानी क्या ?
आहट-आहट, चौखट-चौखट
बैरन नई पुरानी क्या...?

उन बातों की बातें मुझको
बिल्कुल वैसे ताजी हैं
जैसे साखी, सबद, सवैये
कोई प्रेम कहानी क्या !

बारिश, जंगल, हवा, पहाड़ी
नदियां अभी रवानी हैं !
लेकिन सारी बातों मुझको
तुझको सुनी सुनानी क्या ?

आते-जाते, रुकते-चलते,
कुछ तो दिल में चुभता है,
जब जब कह देता है कोई
गा दूं तुझको हानी क्या ?

पागल, पागल होकर देखा
तेरे एक बहाने से
और तभी से दुनिया भर की
मुश्किल मुझको मानी क्या...?

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'