ये अर्ज़ है!
कंधों पर बोझिल कर्ज़ है!
अर्ज़ है!
बहते पानी की प्यास है!
जो छूटा, वो खास है।
फिर भी टूटी सी आस है?
क्या मर्ज़ है?
अर्ज़ है!
धक-धक धड़कन में हो रही
किस्मत मुंह फेरे सो रही
रिश्ते नातों का सब भरम
मित्रों-यारों का हर धरम
खुदगर्ज़ है
अर्ज़ है!
उसकी मिट्टी का ये महल
ये धूप-छाओं, ये चहल पहल
बनी रहेगी या नहीं?
मुझको शक है कि वो यहीं
दर्ज है!
अर्ज़ है!
©- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
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