
मत करो बाई पास डाकदर साहब...
ऐसे ही रहने दो कुछ दिन और...
दिल से खुरचकर निकाला हिस्सा
ज्यादा सताता है मरने से... !
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एक हिस्सा था, भीतर तक गहरा जुड़ा हुआ...
था...! है नहीं अब...
बुरा हुआ...
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उसके सारे सपनों की न्यौछावर लेकर
बनना दूल्हा...
खूब रस्म निभी...
खूब कीमत चुकी...
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देवेश वशिष्ठ 'खबरी'