
दीवार पर गढ़ी कील,
दिल-दीवार,
बाकी तुम..!
बांस सा ज्वार,
फनकार,
बंसी की धुन!
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चुक गए सवाल,
सांस,
मोक्ष-
रंगीन पानी...
तेरा अक्स...
होश!
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आहट,
अकेलापन,
डर-
न तू,
न मां,
न घर!
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खारा सागर,
टूटी बोतल,
जिन्न-
कारे आखर,
कोरे कागज,
तेरे बिन!
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तड़पती भूख,
रेगिस्तान,
प्यास!
वादियां... झरना...
तू...
काश!
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देवेश वशिष्ठ खबरी
9953717705
Waah !! Waah !! Waah !!
जवाब देंहटाएंBahut bahut sundar....sabhi kshanikayen man me utar jane wali.
इन पंक्तियों से कूद-फाँद की चोट का आभास-सा मिलता है। अच्छा है। छंदज्ञान की ओर यही रास्ता जाता है। बढ़े चलो…
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा भाई अब काफी समझदार हो गए हो ।
जवाब देंहटाएंतुमहारा गोपी भैया