6/3/09

गीली- गीली...


मुझे फेंक दिया किसी ने वहां से
शायद चुक गये थे मेरे पुण्य पिछले जन्मों के
या शायद मंहगा था वो स्वर्ग
मिट्टी के कुल्हड़ों वाला...
गर्म दूध वाला...
चढ़े और ढ़ले रास्तों वाला...
उस पहाड़ी का वो गीला मौसम
बहुत याद आता है...
और तुम भी,
गीली- गीली...
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देवेश वशिष्ठ 'खबरी'

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