
(चित्र में बायें से शैलेश भारतवासी,सजीव सारथी, देवेश खबरी यानि मैं खुद :), , अमित गुप्ता, मनीष ,अरुण अरोड़ा,जगदीश भाटिया
खैर, होटल पार्क में हुई ब्लोगर मैत्री मीट में हमने एकमात्र बिन बुलाऐ मेहमान का एक्सक्लूसिव फर्ज अदा किया। पर ज्यादा मजा तो तब आया जब हर इतवार 'हिन्द युग्म' पर कविता के स्तर को बनाये रखने की सख्त हिदायत देकर पुचकारने वाले युग्मेश्वर शैलेष भारतवासी जी पहने से ही एक्सक्लूसिव की जुगाड़मेंट में बैठे थे। उस दिन मैं नबाबी-पत्रकारी-झोला छाप स्टाइल में था,गालों पर फ्रेन्च कट, बदन पर झनझना लाल कुर्ता और जूट का थैला। बिल्कुल 1947 की लव स्टोरीज की बीट पर काम करने वाले पत्रकार के माफिक। यकीन मानिये इस पहनावे का इतना असर हुआ कि मनीष जी ने तुरंत एक मात्र अलग रखी कुर्सी मेरी तरफ खिसका दी। अब तक मेरी नजर पंगेबाज पर नहीं गयी थी, पिछली ब्लोगर मीट (मैथली जी वाली) में अरुण जी और अविनाश जी का फोटो एक साथ मैंने ही खींचा था, सो डर लगना स्वाभाविक था। जी नजरें मिलीं दुअ सलाम हुई और मैंने कुर्सी थोडी खिसकाकर 'अमित जी' के पास कर ली। अमित जी के पास चूँकि पावर ऑफ अटॅर्नी है एसे में किसी भी पंगे से मुझे वही बचा सकते थे। खैर जब तक पंगेबाज मैदान में रहे मेरे बोल नहीं फूटे। उनके साथ मैथली जी भी थे। जिनके बस इतने ही शब्द मैं सभी के लिये कट-कॉपी-पेस्ट की तरह सुन सका-
"अरे! आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।"
खैर जनाब पंगेबाज जी का पंगे का वक्त हो गया था और मैथली जी का नयी खोजों का। सो दोंनों जल्दी चले गये। मैंने सोचा चलो जान बची, पर असली तो अब अटकी थी। उस दिन अमित जी और मनीष जी के साथ मिलकर पत्रकारों से आहत जगदीश भाटिया जी की तिकडी के बीच मुझे अपना पत्रकार बताना महँगा पड गया। फिर क्या क्या हुआ अगली बार बताऊँगा।
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
अलग और अनोखे अंदाज में लिखा आपने जो कि बहुत ही अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंआपसे मिल कर और बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा। शायद अगर हम यह बातचीत न करते तो आपके असरदार व्यक्तिव को जानने से वंचित रह जाते।
एक नया रूप देखने को मिला आप का.. बहुत अनूठे ढंग से लिखा है आपने बधायी.
जवाब देंहटाएंहम भी पढ़ लिया हूँ, अगली कड़ी का इंतज़ार है। :)
जवाब देंहटाएंdekha devesh tumhe ghaseet kar le jane ka kitna fayada hua
जवाब देंहटाएंमुलाकात को दिलचस्प शब्दों में बयान किया है आपने, देवेश। मनीष जी ने आज मिलना तय हुआ है मेरा।
जवाब देंहटाएंऐसा लगता है कि आप सभी से इकट्ठा मिलने के लिए 14 जुलाई तक इंतजार करना पड़ेगा।
पढ़ कर अच्छा लगा आगे की कड़ी का इन्तजार है।
जवाब देंहटाएंख़बरी जी, मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंएक ही विवरण को जब कई लोग लिखते हैं तो कई बातें उभर कर सामने आती हैं। वैसे जगदीश भाटिया जैसे बड़े लेखक अब तक इस पर चुप्पी साधे हैं, बात समझ में नहीं आई। मुझे लग रहा है वो आपके सिरीज के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं। मुझे भी इंतज़ार है।
बढ़िया अंदाजे बयां है. मजेदार रहा-अगली कड़ी का इन्तजार है. फोटो तो दिख नहीं रही.
जवाब देंहटाएं"वैसे जगदीश भाटिया जैसे बड़े लेखक अब तक इस पर चुप्पी साधे हैं, बात समझ में नहीं आई। "
जवाब देंहटाएंभाई शैलेश हमसे क्या कसूर हुआ कि हमारे ऊपर बड़े लेखक होने का इल्ज़ाम लगा दिया गया:)
वैसे मनीष जी ने और देवेश ने इतना अच्छा विवरण दे दिया कि अब दोहराव की गुंजाइश नहीं बची। उम्मीद है जो बिंदू मनीष से छूट गये उन्हें देवेश अगले हिस्से में पूरा कवर कर लेंगे।
विश्व के सर्वश्रेष्ठ कवि/पत्रकार/ब्लोगर की अगली पोस्ट का इंतजार है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर विवरण.
जवाब देंहटाएंहमने पहली बार आपकी पोस्ट पढी है।अच्छा लगा पढ़ कर।
जवाब देंहटाएंभाई खबरी हमारी क्या औकात जो किसी पत्रकार का नंबर मिले और उसे ना फुनियाएँ:)।
जवाब देंहटाएंबकायदा चिट्ठे पर सूचना दी थी की नाचीज दिल्ली में सबसे मिलने को उत्सुक है अपना फोन नंबर दें, बाकी हम संपर्क कर लेंगे। देखो कल सृजनशिल्पी से भी गपिया लिए । अब आपने इस काबिल ही नहीं समझा तो क्या करते।
बहरहाल रोचक अंदाज है आपका
वैसे कुछ ऐसा वैसा लिखने के पहले सेकेंड ओपोनियन ले लेना :p
आपका अंदाजे-बयां पसंद आया। अगली पोस्ट का इंतजार है। :)
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