23/10/20

ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?

ए भाई! जरा समझाई ये मौत कैसी होगी ?

जब कुछ असर न करे

गुजर-बसर न करे

सब अनमना सा हो

कोई फिकर न करे

जैसा है... बिल्कुल ऐसी ही होगी ?

ए भाई! जरा समझाई ये मौत कैसी होगी ?

 

कमाई का मन न हो

खरच को धन न हो

दुश्मनी भी करें किससे

कुचलने को फन न हो

जो कटे जा रहा है... उस वक्त जैसी होगी ?

ए भाई! जरा समझाई ये मौत कैसी होगी ?

 

टूटने का गम न हो

जोड़ने को हम न हो

खो गया सो खो गया

ढूंढ़ने का दम न हो

जो छूट गया पहाड़ पर.. पत्थर जैसी होगी ?

ए भाई! जरा समझाई ये मौत कैसी होगी ?

 

रात-रात भर घिसता कालिख

सुबह-सुबह मर जाता हैं

कैसे-कैसे भाव उमड़ते

शब्द कहां जुड़ पाता हैं

लिखी सकी ना कभी जो कविता... बिल्कुल वैसी होगी ?

ए भाई! जरा समझाई ये मौत कैसी होगी ?

 

जैसी भी हो.. बनी रहे घर

फुर्सत कब है मरने की

कोई रस्ता.. या.. ना हो

चला-चली बस चलने की

पांव तले जो लगा था टूटा... चक्के जैसी होगी ?

ए भाई! जरा समझाई ये मौत कैसी होगी ?

 

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'

रात 11.53 बजे (22 अक्टूबर 2020, ग्रे.नोएडा)



2 टिप्‍पणियां:

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