8/8/08

कोई मरता क्यों नहीं


वो पहाड़ी अभी तक जिंदा है...
नहीं फटी उसकी छाती इस बारिश में भी...
शायद इसीलिये लोग उसे पत्थरदिल कहते हैं...
वो जिंदा है ये सुनने के बाद भी
कि मैंने उसे छोड़ दिया ..
अभी भी वहीं बहती है नदी...
उसी तरह... सुना मैंने
उसकी गति में आज भी पुकार है...
गालियां नहीं...
ये जानने के बाद भी
कि अब मैं कभी नहीं बैठूंगा उसके पास
पैर लटकाकर उसके साथ
पार्क का फव्वारा रो रहा है वैसे ही
पर उन आंसुओं जैसा नहीं...
जो बहते रहे दिल- दिल में,
पर दिखे नहीं कभी उस दिन के बाद
मेरी तरह...
पर खुलकर उड़ा रहा है वो माखौल
मेरे उन वादों का
जो वहीं पास की बेंच पर बैठकर किये थे मैंने...
रात अब भी नहीं मरी...
उस पर तरस खाकर...
एक भी तारा नहीं टूटा आज
उसके दिल की तरह
जिसे छोड़ दिया मैंने
दुनिया से डरकर...

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही ह्रदयस्पर्शी.
    उम्दा...बेहतरीन....

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  2. वो पहाड़ी अभी तक जिंदा है...
    नहीं फटी उसकी छाती इस बारिश में भी...
    शायद इसीलिये लोग उसे पत्थरदिल कहते हैं...
    वो जिंदा है ये सुनने के बाद भी
    कि मैंने उसे छोड़ दिया ..
    अभी भी वहीं बहती है नदी...
    उसी तरह... सुना मैंने
    उसकी गति में आज भी पुकार है...
    गालियां नहीं...
    ये जानने के बाद भी
    कि अब मैं कभी नहीं बैठूंगा उसके पास

    अच्छा लगा ... कुछ याद दिला गया.

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  3. अच्छी कविता है। मुझे भी कुछ याद दिला गया।

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  4. अच्छा लगा पढ़ कर, बढ़िया।

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  5. अच्छा लगा पढ़ कर, बढ़िया।

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