

चाहें तब जब वो बिट्टू के साथ था, या तब जब बिट्टू उसके लिए एक कहानी बन गई... खैर उस वक्त इंदू देव की बिट्टू के साथ साथ टूरिस्ट गाइड भी थी... मंदिर के पीछे घाट की सीड़ियों पर बैठकर उथली नदी में पैर डाले इंदू बोली... पता है देव देहरादून का पुराना नाम द्रोणाश्रम था और द्वापर युग में पांडवों तथा कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य यहां तपस्या के लिए आये थे... उन्होंने यहीं, इसी गुफा में कठोर तपस्या की थी... और तब भोलेनाथ ने स्वयं उन्हें दर्शन दिये थे... तभी से इस मंदिर का नाम तपकेश्वर महादेव हो गया... इंदू की ये मायावी सी बातें देव की समझ में तो नहीं आती थीं पर उसके मुंह से कहानी की तरह सुनने में मज़ा खूब आता था... उथले पानी में छोटी छोटी मछलियां उनके पैरों के इर्द- गिर्द इकठ्ठी हो जाती तो देव पैर हटा लेता... पर इंदू के ठंडे पानी में पैर डाले रहती...

अरे मेरे बुद्दू पायलेट... अगर इस दुनिया में जब तक आप किसी को कोई नुकसान न पहुंचाओ, तब तक कोई किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता... उसकी इस बात को सुनकर देव पहाड़ी नदी के पानी में दोबारा पैर तो डाल देता पर उसकी नादानी पर हंसी खूब आती... घर से इतनी दूर दुनियादारी देखने के बाद भी उसकी ये बात वास्तव में नादानी ही लगती थी... देव कभी ज्यादा नहीं बोलता था... उसे बस सुनने में मज़ा आता था... इंदू बोलती रहती और देव मजे से सुनता रहता... ये वो दिन थे जब किसी बात पर किसी का कोई झगड़ा नहीं होता था... सच कहूं ऐसी कोई बात ही नहीं होती थी, जिसमें झगड़े की कोई गुंजाइश बचे... जब वो छोटी मछलियां पैरों से टकराने लगी तो देव बोला... बिट्टू ये पानी गन्दा हो गया है... शायद... बात में छिपी बात से बेफिक्र इंदू फिर शुरू हो जाती... हां, सो तो है... इंदू ने सहमति जता दी... लेकिन फिर चहकी और बोली... देव जानते हो, इस नदी में कभी दूध बहता था... इससे भी एक कहानी जुड़ी हुई है...

क्यों तुम्हें आदमी पसंद नहीं हैं... देव ने पूछा...
इंदू देव की आंखों में झांकी और बोली- नहीं... मुझे खामोशी पसंद है... पर तुम्हारे साथ...
फिर तो हो गया... मेरे साथ तुम कभी खामोश रहती हो... जब देखो तब पक पक पक पक...
दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े... पानी की मछलियां अब देव को डरा नहीं रही थी... अब गुदगुदी हो रही थी....

जारी है...
देवेश वशिष्ठ खबरी
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