कोई अमीरी वमीरी नहीं आई
ये बाल फिकरों में झड़ रहे हैं
कंधे में दर्द था सो झटकी गर्दन
वो खामखां हम पर बिगड़ रहे हैं
न हूर की परियां, न ज़मीन बाकी हैं
किस बात की खातिर जंग लड़ रहे हैं
दर्द का दरिया न कोई बड़ी कमाई है
सब हवा हवाई हैं जो गीत पढ़ रहे हैं
- देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी'
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