27/2/08

राधा कैसे न जले- 2

वादियां... मेरी आवारगी की कहानी-I देखने के लिये यहां क्लिक करें-



बिट्टू यानि इंदू... अपने आप में एक कम्पलीट कहानी... इंदू ने अपने पिता को जिंदगी में बस एक बार देखा... जिंदा नहीं... कफन में लिपटा हुआ... उसका अधिकार अपने पिता पर बस इतना ही हो पाया कि उसके आने तक उनकी अर्थी रोक ली गई थी... इंदू को बचपन में ही बोर्डिंग भेज दिया गया था... इंदू की मां को वो पसंद नहीं थी... क्यों... इसका जबाब भी उसे पिता की मौत के बाद ही मिल सका... बचपन से आसाम में रही... बोर्डिंग स्कूल में... नर्सरी से लेकर बारहवीं तक... रिश्ते अहमियत रखते हैं ये उसे तब पता चलता जब होस्टल की फीस औऱ जेबखर्च उसके स्कूल एकाउंट में क्रेडिट कर दिये जाते थे... कभी कभी भाई मिलने आ जाता था तो पता चलता था कि लड़कों से कुछ औऱ भी रिश्ते बनाये जा सकते हैं... हर साल उसकी दुनिया बदल जाती थी... बोर्डिंग में खूब रैगिंग...ली भी औऱ दी भी...उत्तर औऱ पूरब में कुछ परेशानी है... ये उसे वहीं समझ में आया... नये एडमीशन हुए तो सब खुश हो जाते थे... पर पहली बार जब असम के उस स्कूल में गोलियां चली तो जिंदगी भी समझ में आ गई... बिट्टू तब तक बिट्टू नहीं थी... वो इंदू थी... छ: साल की इंदू... घर से दूर गई तो रोई थी या नहीं उसे याद नहीं... पर उसने कभी घर को याद भी नहीं किया... असम में इंदू ने दुनियादारी की पूरी तालीम पाई... जब देह भरने लगी तो पूरब की चपटी नाक वाली लड़कियों के बीच इंदू ही सबसे खूबसूरत लगती थी... लड़के आगा पीछा करने लगते औऱ वो किसी को घास नहीं डालती थी... या यूं भी कह सकते हैं कि उसे गुरूर था अपने चेहरे-मोहरे पर... घर का प्यार मिला नहीं तो जहां से भी मिला... बटोरती चली गई... लेकिन दो दिन औऱ तीन रातों की दोस्तियों से जब नकाब हटता तो इंदू का बड़ा बुरा लगता... हालांकि इंदू से कोई ज़ोर जबर्दस्ती की गुस्ताखी नहीं कर सकता था... लेकिन उम्र है... अगर कोई रोक-टोक न हो तो उड़ने की चाहत किसकी नहीं होती... कभी- कभी उसे अपनी ही इस आजादी से घुटन होने लगती... पर माहौल मिले तो कौन कम्बख्त घुटने बैठेगा... बोर्डिंग के लड़के बड़े घरों के बिगड़े शहज़ादे थे... अफम... चरस...दारू औऱ मारपीट... इसी दुनिया में मस्त औऱ व्यस्त रहते थे... अब सोहबत से कब तक कोई खुद को दूर रख सकता है... कुल मिलाकर हुआ ये कि रोज लड़कों को चरस पीते देख एक दिन उसका भी मन कर आया... लड़कों ने बहका दिया औऱ इंदू लगा बैठी ड्रग का इंजेक्शन... बहक तो गई पर संभाल नहीं पाई... इंदू के मुंह से झाग आने लगे तो उसके साथी घबरा गये... हास्पीटल में भर्ती कराया तो बात खुल गई... इंदू के घर वालों को बुलाया पर कोई नहीं आया... इंदू को इन्जेक्शन का ज़हर रिएक्शन कर गया औऱ पूरे चेहरे पर दाने निकल आये... इंदू ठीक तो हो गई तो उसे लगा कि सब उससे कटने लगे हैं... जो कल तक आगा पीछा करते थे, अब हाय हलो भी नहीं करते... कभी कभी कुछ झटके इंसान को बिल्कुल बदल देते हैं... इंदू भी बदल गई थी...

जारी है...
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336

भूल...

रोज़ बदलता हूं कम्प्यूटर के डेस्टोप से चेहरा अपना
औऱ पीछा छुड़ा लेता हूं तुझ से...
रोज़ लिखता हूं एक खत तुझे याद कर...
रोज़ गांठता हूं दोस्ती नए लोगों से...
और रोज़ भूल जाता हूं तुझे...
इस कदर कि तुम फिर याद नहीं आती...
जब तक मैं अगले दिन फिर न भुला दूं तुम्हें...
यकीन न आये तो देख जाना...
तुम आना कभी मेमना लेकर... पहाड़ों से...
पेड़ की उलझी डाल से झांककर ढूढ़ना मुझे...
और पूछना मेरा हाल...
वैसे मुझे तो तुमने भी भुला दिया होगा ना अब तक...

22/2/08

राधा कैसे न जले- 1



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'तो क्या सोचा तुमने देव...'
बिट्टू की आवाज ने लम्बी खामाशी तोड़ी... कांच के गिलास में चाय शर्बत हो गई थी... पर अभी देव को उसे पीने लायक होने का इंतज़ार था... दो दिन से लगातार बारिश हो रही थी... मसूरी में मौसम की पहली बर्फ गिरी थी... करनपुर मे किराये के कमरे की छत से अक्सर देव औऱ बिट्टू मसूरी और धनोल्टी की पहाड़ियों को निहारा करते थे... देव यानि देवराज़... औऱ बिट्टू यानि इंदु... इंदु को देवराज प्यार से बिट्टू बुलाता था...
बिट्टू धनोल्टी की पहाड़ियां देखो कैसी सफेद हो गई हैं...
सुंदर हैं ना...
देवराज ने एक घूंट में चाय की फार्मेलटी पूरी कर दी... वो अक्सर ऐसा ही किया करता था... कॉफी शाम को तैयार करता... रात भर लिखता रहता... औऱ सवेरे के पहले पहर गटागट पीकर सो जाता... हॉट कॉफी को कोल्ड करके पीने में या तो उसे मज़ा आता था या चाय औऱ कॉफी उसके लिये बस एक ज़रिया होती थी कि सिलसिला चलता रहे...
लेकिन देव ये तो मेरी बात का जबाब नहीं है...
ऊं... देव ने कुछ इस अंदाज़ में पूछा जैसे वो उसके सवाल पर ध्यान नहीं दे पाया है...
बिट्टू ने सवाल दोहराया... तुमने क्या सोचा है देव...
कांच के खाली गिलास में खोए खोए उसने कहा...
पता नहीं यार... कुछ नहीं पता...
घबराई सी नज़रों से दोनों ने एक दूसरे को देखा... औऱ फिर हिचकियां बंध गई... हलकी हलकी बारिश हो रही थी... बिट्टू को बुखार आ गया...
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बिट्टू को बुखार आ गया था... देवराज दिल्ली से पत्रिकारिता की पढ़ाई कर रहा था लेकिन उसके दिल में एक अजीब सी आवारगी थी... यही आवारगी उसे देहरादून तक खींच लाई... एक प्रोडक्शन हाऊस में कैमरामैन की नौकरी कर ली... तनख्वाह आठ हज़ार रूपये महीना... बहुत थे तब अकेली जान के लिए... पर देवराज के लिये नहीं... मैं ये सब इसलिये बता रहा हूं जिससे आप कोई पूर्वाग्रह बनाने से पहले देवराज या बिट्टू के देव को समझ जाएं... इस कहानी के देव का करेक्टर कुछ ऐसा है जिसे अकेला रहना पसंद है... पर चाहता है कि कोई हो जिसे पाल सके... जिस पर सब लुटा सके... जिसका दीवाना हो जाये... लुटने औऱ कमाने की चाहत ही देवराज की खासियत है... औऱ कोई खोट नहीं... कोई एब नहीं... पर कानों का कच्चा है... दिल का भी... ख्वाब इतने कि सवेरे आंखें खोलने का मन नहीं करता... पर उस पूरी रात देव को नींद नहीं आई... वैसे अक्सर ऐसा होता था... बिट्टू की तबियत बिगड़ती जा रही था... बिट्टू को तेज़ फीवर था... पर उसे सहन करने की आदत थी... वैसे ये आदत दोनों को थी... औऱ इसी लिये दोनों के बीच खूब पटती थी... दोनों अक्सर मिला करते थे... पर जमीन पर बिछे गद्दे पर दूर दूर बैठे रहते थे... और दूरी को सहन करते रहते थे... किसी को पहल करना गवारा नहीं था... देव बिट्टू के लिये चाय बनाता... तब तक बिट्टू देव का कमरा सजाती... पर दूर-दूर... खामोश-खामोश... बड़ा अनकहा सा प्यार था दोनों के बीच... पर प्यार बहुत था... इतना कि देव रात में दो बार बिट्टू के पीजी तक चक्कर लगा आया था... फोन किया तो पता चला बंदिश है... रात को वो नहीं आ सकती... सवेरे चार बजे देव के कमरे पर बिट्टू ने नॉक किया... देहरादून में अब बर्फ नहीं पड़ती पर बुखार में तपती बिट्टू बारिश में एक बार फिर भीग गई थी... हालांकि देव उसका हालचाल लेने औऱ एक नज़र देख भर लेने के इंतज़ार में था... पर इस तरह उसने कभी नहीं सोचा था... ये क्या पागलपन है पगली... देव ने भीगी बिट्टू को कसकर गले से लगा लिया... पहाड़ों पर अक्सर बारिश के साथ ठंड़ी हवाएं चलती हैं... उस रोज भी चल रहीं थीं... तारीख २६ जनवरी २००७... ठंड जैसे कुछ कर बैठने की कसम खाकर आई थी... उस रोज़ शायद कुछ हो जाना था...
देव मुझसे सहन नहीं हो रहा...
बस बिट्टू इतना बोल सकी... उसमें जैसे इतनी ही ताकत बची थी... बिट्टू निडाल हो गई... ठंड में बुखार से तप रही थी... माथा जल रहा था... हाथ बिल्कुल ठंडे पड़े थे... बोल भी ऐसे निकले जैसे गले में आवाज़ निकलने की जगह ही नहीं बची हो... देव ने बिट्टू को सम्हाला...
देव ने जल्दी हीटर चलाया... पर गीले कपड़ों में बिट्टू की तबियत बिगड़ती जा रही थी... देव ने बिट्टू को उठाने जगाने की बहुत कोशिश की... पर उसे कोई होश नहीं था... लग रहा था कि बस उसकी सांस उखड़ रहीं हैं... पहली बार देव उसके इतने करीब था... लेकिन परेशान... घबराया हुआ औऱ लाचार सा... स्वेटर... कोट... शाल... कंबल... देव के पास जो कुछ था उससे बिट्टू को ढंक दिया... जो हो सका करने की कोशिश की... जैसे भी बिट्टू को राहत मिल सकती थी किया... पर बिट्टू बुरी तरह तप रही थी... देव की घबराहट इस कदर बढ गई कि आंखें भर आईं... गला रुंध गया... बस एक शब्द निकला... आई लव यू बिट्टू... प्लीज आंखें खोलो बिट्टू... प्लीज...
देव की हिचकी बंध गईं थीं... बिट्टू ने बमुश्किल आंखें खोली... होठों से कुछ बुदबुदाने की कोशिश की... पर बोल नहीं पाई... बिट्टू बिल्कुल राजकुमारी लग रही थी... किसी राजकुमार की गोद में सिमटी राजकुमारी...
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जारी है...

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336