25/1/22

दरिंदा

ये क्या कम लड़ाई है कि ज़िंदा हूं
ऐ मौत मुझे माफ कर.. शर्मिंदा हूं !

उसे इश्क था मुझसे, बड़े हिसाब का
मुझे कुर्बान होना था, उसका चुनिंदा हूं !

ख़ामोशी से ज़िबह होता, ठीक था 
लेकिन मैं चीख़ उठा, ऐसा दरिंदा हूं 

मेरी गर्दन पर छुरी बस चलने वाली थी 
फिर याद आया मैं पर वाला परिंदा हूं

- देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी'

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