प्रेम में भी
सीधी रेखाओं के
काटने से ही बनता है कोण !
प्रेम की समानांतर रेखाएं भी
अनंत तक करती हैं मिलने का इंतज़ार !
प्रेम की ज्यामिती के त्रिकोण में भी
हमेशा दो भुजाओं का योग
तीसरी से बड़ा होता है !
प्रेम की छटपटाती धुरी भी
घेरा ही बनाती है !
फिर भी जाने क्यों
कभी सिद्ध नहीं हुए
प्रेम के प्रमेय..?
सीधी रेखाओं के
काटने से ही बनता है कोण !
प्रेम की समानांतर रेखाएं भी
अनंत तक करती हैं मिलने का इंतज़ार !
प्रेम की ज्यामिती के त्रिकोण में भी
हमेशा दो भुजाओं का योग
तीसरी से बड़ा होता है !
प्रेम की छटपटाती धुरी भी
घेरा ही बनाती है !
फिर भी जाने क्यों
कभी सिद्ध नहीं हुए
प्रेम के प्रमेय..?
- देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें