25/1/22

सपनों को खा जाने वालों

सपनों को खा जाने वालो
मेहनत को कब्जाने वालो 
हमने अपने हर सपने में 
अपनी जान छुपा रक्खी है
 
तुम आंसू पर रोटी सेको 
हमने आग जला रक्खी है

- देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी'

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