24/1/22

घाव


तुमने कुरेदा भी वहीं जहां घाव था 
मैं मंजिल नहीं बस एक पड़ाव था

जिसे ज़िंदगी समझा सब लुटा दिया
मैं उसके लिए सिर्फ एक दांव था !

फिर भी डूब गया वो किनारे न लगा 
जिसके लिए मैं कागज था, नाव था !

उसे बचाने में मुझे फिर डूबना पड़ा
पुराना इश्क था, बिल्कुल शराब था

- देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी'

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