गैया का कंबल, वो तुलसी का कपड़ा
वो तिल वाली टिक्की, वो गन्ने की राव
वो टोपे, वो स्वेटर, वो बाबा की गोदी
वो उपले, सरकंडे, शकरकंदी के अलाव
बनिया की दुकानें, मूंफली वाली तानें
वो रुपया, अठन्नी, चवन्नी के हिसाब
अब बस ठिठुरन लाती है
अब सर्दी कब आती है ?
- देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें