24/1/22

बहाने


ये दुनिया रंगीन बहुत है
पर रंगीनियां महंगी बहुत हैं

मेरी नौकरी है मतलब भर की
और घर की ज़रुरत बहुत है

ये पहाड़ ये नदियां,समंदर-वमंदर
जाना तो है पर सर्दी बहुत है

- देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी'

#ख़बरी   #नई_वाली_हिंदी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें