दस लम्हे भी अपने नहीं !
लंबी चौड़ी रात हैं लेकिन
दो सपने भी अपने नहीं !
उनसे पूछो जिनने हमको
जीवन भर का साथ दिया !
चलना है तो चले जा रहे
कदमताल में 'अपने' नहीं !
तुझमें मुझको, मुझमें तुझको
दो दुश्मन से दिखते हैं
एक मांद है, एक म्यान है
इंसा हैं, तलवारें नहीं !
तेरी भी तो क्या मजबूरी
हिस्सा हिस्सा खत्म हुई,
जीने-मरने और रोने में
कितनी सारी रातें.. नहीं ?
6 बाई 6 के एक बिस्तर पर
कितनी हैं दीवारें..? नहीं?
एक-दूजे को मार चुके है
अब औरों को मारें.. नहीं?
एक पटरी की खातिर दोनों
पहिये आगे बढ़ते हैं
उस नाज़ुक पटरी के ऊपर
कितने बोझ हमारे.. नहीं?
तू भी चाहे अच्छा-अच्छा
मैं भी अच्छा बनना चाहूँ
अच्छा-अच्छा करते करते
काम बिगाड़े सारे.. नहीं?
दफ्तर से घर.. घर से दफ्तर
दिन कट जाने सारे नहीं ?
तेरे-मेरे बटुए में हैं
कितने सारे ताने.. नहीं?
आज धूप है, कल खप लेंगे
सर्दी आनेवाली है
सब कपड़ों को धूप दिख दो
काम पड़े हैं सारे .. नहीं!
- देवेश खबरी
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