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ठंडी होती चाय कितनी बेसब्र होती है. जैसे धीरे धीरे प्राण जा रहे हों और जिसके लिए जीवन लगा देने का व्रत लिया है वो बेपरवाह हो गया हो. देव नए दफ्तर जाता है और सवेरे की चाय का पहले कप में से अचानक जैसे कोई पहाड़ी जिन निकलता है और उसे खूब चिढ़ाता है. उसके होठों पर भी वैसी ही प्यासी मटमैली पपड़ी पड़ जाती है जैसी ठंडी होती चाय पर होती थी. थोड़ी देर बाद जिन चुपचाप फिर उसी कप में उतर जाता है और खाकी मटमैली पपड़ी में छिपकर जोर जोर से रोने लगता है. देव उससे ध्यान हटाता है और लबादे की तरह डेस्क पर पड़े अखबारों पर सरसरी नज़र दौड़ाता है. पर खबरों के काले काले अक्षरों बड़े बड़े दाड़ी मूछ वाले राक्षसों की तरह उसे डराने लगते हैं. हर खबर में वो देहरादून-मसूरी को ढूंढता है. कुछ नहीं मिलता तो अखबारों की रद्दी से मितली सी होने लगती है. उसके भी होंठ सूखने लगे हैं. वो कम्यूटर पर कुछ टाइप करना चाहता है पर कीबोर्ड से एक परी निकलकर जादू कर देती है. कोई बटन काम नहीं करता. वो जोर जोर से बटन दबाता है. अचानक वो देखता है कि वर्ड फाइल पर कुछ लिखा है. एक ही नाम. बार बार. बिट्टू का नाम. उसने चाय का कप उठाया और पपड़ी के पीछे के रोते जिन समेत पी लिया. जिन अंदर जाकर फिर परी बन गया है. उस परी के हाथ में फुलझड़ी है उसका चेहरा जाना पहचाना है. बिल्कुल वैसा जैसा वो भट्टा फाल के पास छोड़ आया था. उसके दूसरे हाथ की उंगली में चोट लगी है. बिट्टू रो रही है. और असाइनमेंट डेस्क की लड़की देव को देख देखकर हंस रही है. देव को लगता है कि उसका रूप रंग बदल रहा है. उसके कपड़े गेरूए हुए जा रहे हैं. उसकी दाड़ी अचानक बढ़ गई है. उसने बाल बढ़ गये हैं और मसूरी की किसी बेशर्म आवारा पहाड़ी ने अभी तक आंखें नहीं मूंदीं हैं. उसने एक बरगद के पेड़ को भेजकर उसके लंबे बालों में दूध मल दिया है. असाइनमेंट डेस्क की वो लड़की अभी तक हंस रही है. वो बार बार कनखियों से उसे देख रही है. देव को उसकी इस हरकत से गुस्सा आ रहा है. क्यों उसे नहीं मालूम. पर ये लड़की भी उसे मसूरी की उसी पहाड़ी की तरह लग रही है. जिसे कभी भी शर्म नहीं आई. जिसने कभी आंखें नहीं मूंदी. जो चुपचाप आने वाली खामोशी में अचानक छींक पड़ती थी. बिट्टू अचानक सहम जाती. और वो निर्जन पहाड़ी फिर हंस देती. कभी कोई कोयल बोलती थी तो अच्छी लगती थी. लेकिन शायद ये लड़की बिल्कुल अच्छी नहीं है. देव को घुटन हो रही है. उसे प्यास लग रही है. वो ट्रे से ढंके पानी को देखता है. वो झरना बन जाता है मीठे पानी का झरना. बिल्कुल भट्टा फॉल के पानी की तरह. देव कुछ समझ नहीं पा रहा. उसे पसीना आ जाता है. वो ऑफिस बॉय पर झल्लाता है. एसी ऑन करने को कहता है. अचानक गिलास के पानी से वही परी फिर बाहर आती है. धीरे धीरे पंखा झलती है. अब देव को राहत मिल रही है. सब सामान्य हो जाता है. असाइमेंट डेस्क की लड़की उठकर वहां से चली जाती है. देव को थोड़ी दम आती है. वो पानी का गिलास उठाता है. एक घूंट पीता है. पर पानी एकदम खारा है. जैसे किसी के आंसू पी रहा है. वो घबराकर गिलास रख देता है. परी फिर गायब हो जाती है. उसकी दाड़ी-मूंछें अपने आप हट जाती हैं. गेरुए कपड़े फिर पेंट शर्ट बन जाते हैं. की बोर्ड फिर काम करने लगता है. ऑफिस बॉय जिन वाला चाय का कप ले जाता है. खारे आंसू का गिलास फिर मीठे पानी से भर जाता है. असाइनमेंट की लड़की फिर आकर अपनी जगह बैठ गई है. लेकिन वो जटाधारी जोगी भागकर लंबी सांस के साथ देव के अंदर दाखिल हो जाता है. देव को लगता है जैसे उसे किसी मंदिर का महंत बनाकर यहां भेज दिया गया है और उसके प्राण वहीं पहाड़ों की किसी गुफा में रह गए हैं. वो परी उसकी आंखों में आ गई है. और अलिफ लैला की कहानियों के जान वाले तोते की तरह वो अपनी नज़रों को दुनिया से छिपाए फिर रहा है.
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336
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अच्छा लगा पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ कार्य किये हैं.
जवाब देंहटाएंआप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
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जवाब देंहटाएंbahot hi achha likha hei... the feelings and emotions are deeply heart touching....i am very fond of you and your story..
जवाब देंहटाएंthank you for giving us(all readers) a very nice creation.
BEST OF LUCK