ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?
जब कुछ असर न करे
गुजर-बसर न करे
सब अनमना सा हो
कोई फिकर न करे
जैसा है... बिल्कुल ऐसी ही होगी ?
ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?
कमाई का मन न हो
खरच को धन न हो
दुश्मनी भी करें किससे
कुचलने को फन न हो
जो कटे जा रहा है... उस वक्त जैसी होगी ?
ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?
टूटने का गम न हो
जोड़ने को हम न हो
खो गया सो खो गया
ढूंढ़ने का दम न हो
जो छूट गया पहाड़ पर.. पत्थर जैसी होगी ?
ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?
रात-रात भर घिसता कालिख
सुबह-सुबह मर जाता हैं
कैसे-कैसे भाव उमड़ते
शब्द कहां जुड़ पाता हैं
लिखी सकी ना कभी जो कविता... बिल्कुल वैसी होगी ?
ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?
जैसी भी हो.. बनी रहे घर
फुर्सत कब है मरने की
कोई रस्ता.. या.. ना हो
चला-चली बस चलने की
पांव तले जो लगा था टूटा... चक्के जैसी होगी ?
ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?
- देवेश
वशिष्ठ 'खबरी'
रात 11.53 बजे (22 अक्टूबर 2020, ग्रे.नोएडा)