19/4/09
तुम खट्टी होगी...
तुम खट्टी होगी...
पर सच्ची होगी...
अभी छौंक रही होगी हरी चिरी मिर्चें...
खट्टे करौंदों के साथ...
या कच्ची आमी के...
या नींबू के...
या ना भी शायद...
नाप रही होगी अपना कंधा...
बाबू जी के कंधे से...
या भाई से...
और एड़ियों के बल खड़ी तुम्हारी बेईमानी
बड़ा रही होगी तुम्हारे पिता की चिंता...
तुम भी बतियाती होगी छत पर चढ़ चढ़
अपने किसी प्यारे से...
और रात में कर लेती होगी फोन साइलेंट...
कि मैसेज की कोई आवाज पता न चल जाए किसी को...
तुम्हें भी है ना...
ना सोने की आदत...
मेरी तरह...
या शायद तुम सोती होगी छककर... बिना मुश्किल के...
जब आना...
मुझे भी सुलाना...
गणित से डरती होगी ना तुम...
जैसे मैं अंग्रेजी से...
या नहीं भी शायद...
तुम लड़ती होगी अपनी मम्मी से...
पापा-भैया से भी,कभी कभी...
मेरी तरह...
पर तुम्हें आता होगा मनाना...
मुझे नहीं आता...
बताना...
जब आना...
तुम खट्टी होगी...
चोरी से फ्रिज से निकालकर
मीठा खाने में तुम्हें भी मजा आता होगा ना
तुम भी बिस्किट को पानी में डुबोकर खाती होगी...
जैसे मैं...
या शायद तुम्हें आता होगा सलीका खाने का...
मुझे भी सिखाना...
जब आना...
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9953717705
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बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दरता से घटनाओं को पिरोती बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन देवेश जी दो लाइने मेरी तरफ से भी
जवाब देंहटाएंवयार,,,,,,,
बड़ी लुभावन है मनभावन ..
जह फागुन वयार,,,,,,,
जान निज प्रिय आगमन …
कर नभ मुकुर श्रंगार ,,,,
चल चपला सा चितवन ,,,,
लाखे सुरपुर माधुरी ,,,,,,,
उमंडी घुमंडी येचती नव वधु सी ,,,
रम्य मूरत सुंदरी की ,,,,,
तेहि छवि जाल देखत मन वहो ,,,
लेखी उमंग निज सर छहों ,,,
रज छटक छटक गिरती ,,
मनो नुपुर कनक के
रगड़ झर झर करती …..
मनो कर प्रेमिका के ,,,
रूपसी ने निज प्रिय के लिए ,,
सब पुष्प पुष्पित कर दिए
नव गंध सुगंध भरके ,,,
पुष्प निज कर भर लिए ,,,
प्रिय आगमन ते है पसीना पसीना
व्याकुल निज प्रिय वसंत के लिए
आप का प्रवीण शुक्ल
9717840940,9211144086