देवेश का ब्लॉग

यादें पवित्र होती हैं इसलिये बची रहती हैं... इन्हीं बेहद निजी यादों को संजो रहा हूं, नाज़ुक हैं... सहेज लीजियेगा

19/6/25

अर्ज़ है!

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अर्ज़ है! ये अर्ज़ है! कंधों पर बोझिल कर्ज़ है! अर्ज़ है! बहते पानी की प्यास है! जो छूटा, वो खास है। फिर भी टूटी सी आस है? क्या मर्ज़ है? अर्ज़ है...

ये मकड़ी से जाले !

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मैं मुक्त हुआ... ये मकड़ी से जाले, झंझावत यूं घिरे हुए हैं कितनी लतिका डाले - ये मकड़ी से जाले ! ये क्षितिज, आकाश के उस पार... धरती के ऊपर, ...
13/6/25

फिर से जाना होगा घर... इसी बात से लगता डर !

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फिर से जाना होगा घर इसी बात से लगता डर किसी और ने चाल चली हमें बता दिया 'मुख़बर' खूब पता है इश्क नहीं फिर भी करते आडंबर कैसे कर लेते...

आईने में जब भी देखा...

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आईने में जब भी देखा तू भी दिखा, डर भी दिखा, मेरे जैसा ही कोई चेहरा बार-बार मर भी दिखा । साथ-साथ तो चले हमेशा राह अलग थी, सोचें भी पूरा रस्ता...

रमता जोगी, बहता पानी... तेरी राम कहानी क्या ?

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रमता जोगी, बहता पानी तेरी राम कहानी क्या ? आहट-आहट, चौखट-चौखट बैरन नई पुरानी क्या...? उन बातों की बातें मुझको बिल्कुल वैसे ताजी हैं जैसे साख...
30/10/22

तबाही मेरी

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डूब गई रौशनाई मेरी तुम्हें देखनी है तबाही मेरी ? घर नहीं लौटना तो इतना बता दो कहां रखी है दवाई मेरी ? कैसे यकीन दिलाऊं, एक दौर था होती थी वा...
25/1/22

डर

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डर डर कर और मर मर कर लगे रहो बन घनचक्कर अकर बकर तुम करो फिकर तुम सिर पटको ये संगमरमर कंकर को शंकर समझोगे कूकर को भयंकर समझोगे बेमौत मरोगे ...

सपनों को खा जाने वालों

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सपनों को खा जाने वालो मेहनत को कब्जाने वालो  हमने अपने हर सपने में  अपनी जान छुपा रक्खी है   तुम आंसू पर रोटी सेको  हमने आग जला रक्खी है - द...

प्रेम के प्रमेय

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प्रेम में भी  सीधी रेखाओं के  काटने से ही बनता है कोण ! प्रेम की समानांतर रेखाएं भी  अनंत तक करती हैं मिलने का इंतज़ार !  प्रेम की ज्यामिती ...

अब क्या मर जाएं ?

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और तेरे कितने गीत गाए अब क्या मर जाएं ? बच्चों को भूख भी लगती है ये जाकर किसे बताएं ? तेरी सलामी में दोहरे हो तो गए तेरे खेल के मोहरे हो तो ...

हवा हवाई

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अकड़  के  नहीं  चल रहे हैं बस हम ठंड से लड़ रहे हैं कोई अमीरी वमीरी नहीं आई ये बाल फिकरों में झड़ रहे हैं कंधे में दर्द था सो झटकी गर्दन वो खाम...

दरिंदा

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ये क्या कम लड़ाई है कि ज़िंदा हूं ऐ मौत मुझे माफ कर.. शर्मिंदा हूं ! उसे इश्क था मुझसे, बड़े हिसाब का मुझे कुर्बान होना था, उसका चुनिंदा हूं ...

तुम्हारी उदासी

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तुम्हारी उदासी बासी लगती है करवट वाली काशी लगती है ऐसा लगता है कि मुझे फूंककर तुम्हें मिली शाबाशी लगती है तुम्हारी उदासी बासी लगती है - देवे...

डर

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जब जब मैं डर जाता हूँ बड़ा हिम्मतवाला कुछ कर जाता हूं जब-जब मौत मुकर्रर होती है मैं जिंदा रहता हूँ न कि मर जाता हूं - देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी...

ज़रूरी है...

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शायद अब पीना ज़रूरी है फटी जेब को सीना ज़रूरी है सिर्फ दाद मिलना काफी नहीं शायर का जीना ज़रूरी है बिना मेहनत कैसे अमीर हुआ वो? मेरे हर कौर में ...

अब सर्दी कब आती है

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गैया का कंबल, वो तुलसी का कपड़ा वो तिल वाली टिक्की, वो गन्ने की राव  वो टोपे, वो स्वेटर, वो बाबा की गोदी वो उपले, सरकंडे, शकरकंदी के अलाव बनि...

ख़ून

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चल तूने ये सुकून दे दिया  मुझे भी जंगी जुनून दे दिया जो नासूर बन गए कुरेदकर सहलाने को नाखून दे दिया मैं कभी थाने तक गया नहीं तूने मेरे हाथ क...

इश्क के दूजे दर्जे में

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हम इश्क के दूजे दर्जे में बस जैसे-तैसे पास हुए  धीरे-धीरे लिखते-रटते पूरे सब अभ्यास हुए ! पर वो जो आला नंबर थे जो इंसा नहीं कलंदर थे जब पूछा...
24/1/22

घाव

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तुमने कुरेदा भी वहीं जहां घाव था  मैं मंजिल नहीं बस एक पड़ाव था जिसे ज़िंदगी समझा सब लुटा दिया मैं उसके लिए सिर्फ एक दांव था ! फिर भी डूब गय...

होठों के प्रेम-प्रपंचों से

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होठों के प्रेम-प्रपंचों पर कितने कागज़ बर्बाद किए  कितनी रातें नीदें जागीं कितने आंसू आबाद किए ? तब काश कलम को कह देता बस आंसू लिखना अच्छा ह...

बहाने

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ये दुनिया रंगीन बहुत है पर रंगीनियां महंगी बहुत हैं मेरी नौकरी है मतलब भर की और घर की ज़रुरत बहुत है ये पहाड़ ये नदियां,समंदर-वमंदर जाना तो है...
3/12/21

प्रेम से उचटे हुए मन

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कहीं भी जाएं कितना भी कमाएं नदी, पहाड़ी, तीर्थ, संगम कहीं भी घूम आएं प्रेम से उचटे हुए मन सो नहीं सकते वो हंस नहीं सकते कभी वो रो नहीं सकते। ...
2/11/21

तुम कैसे हो ? हम बढ़िया हैं !

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  तुम कैसे हो ? हम बढ़िया हैं  एक गैया है.. दो पड़िया हैं हम बढ़िया हैं  फ्लैटों में पलते पोमेरियन इस आंगन में चिड़िया हैं  हम बढ़िया हैं  व...

...नहीं !

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दसियों साल से साथ हैं लेकिन दस लम्हे भी अपने नहीं ! लंबी चौड़ी रात हैं लेकिन दो सपने भी अपने नहीं !   उनसे पूछो जिनने हमको  जीवन भर का साथ दि...
23/10/20

ए भाई! जरा समझाई… ये मौत कैसी होगी ?

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ए भाई ! जरा समझाई … ये मौत कैसी होगी ? जब कुछ असर न करे गुजर-बसर न करे सब अनमना सा हो कोई फिकर न करे जैसा है... बिल्कुल ऐसी ही होग...
2 टिप्‍पणियां:
14/7/17

अबे ओ दल्ले ! सुनो...

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अबे ओ दल्ले सांप की केंचुली में छिपे जोंक तुम सबसे घिनौने तब नहीं होते  जब बनते हो प्रहरी और हाथ में ...
10 टिप्‍पणियां:
10/3/17

रुंधे गले से...

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मुश्किल होता है नैसर्गिक होना जैसे सबकी आवाज उठाओ , और खो बैठो अपनी आवाज ऊं ...  ऊं ...  घुर्र घुर्र ....  बस जाहिलों की तरह ... ...
3 टिप्‍पणियां:
14/6/13

तो मेरी पहचान उन्हीं होठों से हो..।

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सब इधर उधर की बातें... जगती-सोती सी रातें... बिन मौसम कुछ बरसातें... कुछ जीतें और कुछ मातें... एक तेरी मुस्कान जो इतने भर से हो.....
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1/12/12

प्यार करते थे बाबा...!

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बाबा, अम्मा ने लगाया था ना वो नीम का पेड़... जिसकी गोद में ही आती थी आपको नींद... और उसी की छांव में आपने ली थी आखरी सांस... अब हम नई...
1 टिप्पणी:
8/9/12

प्यार का पेड़

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हमने पेड़ लगाना सीखा पंखुड़ियां सहलाना सीखा सुबह-शाम फिर टुकुर-टुकुर उसकी बात बताना सीखा यूं ही बातें कहते लिखते आज यहां तक आया हूं ...
24/3/12

मां नाराज है।

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तुझसे से दूर हुआ हूं बेशक, पर मां तेरा हूं। तेरे आंगन आता जाता, नित का फेरा हूं। तुझसे सीखा बातें करना चलना पग-पग या डम मग तूने कहा तो मान ल...
1 टिप्पणी:
14/9/11

कॉन्ट्राडिक्शन

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(कई दोस्तों ने कहा कि कॉन्ट्राडिक्शन के अलग अलग टुकड़ों को एक जगह पर लाया जाए। इसीलिए...) कॉन्ट्राडिक्शन-1 (मेरे जिस्म में सरहदें हैं... )...
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मेरी फ़ोटो
देवेश वशिष्ठ ' खबरी '
आगरा, देहरादून, दिल्ली, नोएडा, India
ठेठ हिंदी का आदमी हूं. काम का हूं ये जानता हूं. पंद्रह साल का था जब पहली बार लोकल न्यूज चैनल में खबरें तलाशनी/बांचनी शुरू की थीं. फिर जनमत- इंडिया न्यूज- वीओआई- तहलका- लाइव इंडिया - टीवी9 - न्यूज 24 में राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय होता हुआ फिर लोकल हो गया हूं। फिलहाल दिल्ली में... आज यहां हूं- कल का पता नहीं।
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