19/6/25

अर्ज़ है!


अर्ज़ है!
ये अर्ज़ है!
कंधों पर बोझिल कर्ज़ है!
अर्ज़ है!

बहते पानी की प्यास है!
जो छूटा, वो खास है।
फिर भी टूटी सी आस है?
क्या मर्ज़ है?
अर्ज़ है!

धक-धक धड़कन में हो रही
किस्मत मुंह फेरे सो रही
रिश्ते नातों का सब भरम
मित्रों-यारों का हर धरम
खुदगर्ज़ है
अर्ज़ है!

उसकी मिट्टी का ये महल
ये धूप-छाओं, ये चहल पहल
बनी रहेगी या नहीं?
मुझको शक है कि वो यहीं
दर्ज है!
अर्ज़ है!

©- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'

ये मकड़ी से जाले !

मैं मुक्त हुआ...
ये मकड़ी से जाले,
झंझावत यूं घिरे हुए हैं
कितनी लतिका डाले
- ये मकड़ी से जाले !

ये क्षितिज,
आकाश के उस पार...
धरती के ऊपर,
सागर के दूर किनारे...
- ये मकड़ी से जाले !

चलती लहरें, छूने उसको
पर टकरातीं
तटवर्ती होकर
लेकर रुकीं सहारे...
- ये मकड़ी से जाले !

मैं न रुकूंगा...
दूर लक्ष्य है, गन्तव्य स्वच्छ है
धूल में लिपटा चलता जाऊं,
निशा के बादल काले...
- ये मकड़ी से जाले !

एकाकी ! लेकिन निडर,
पहुँचूँगा वहां, जहां हो स्वतंत्रता
बस मैं और मेरा विश्वास
ईश्वर के बोल, उच्छवास
ये स्वप्न ही हैं शायद
मन के भंवरों में, मेरी नौका डाले
- ये मकड़ी से जाले !

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'

13/6/25

फिर से जाना होगा घर... इसी बात से लगता डर !


फिर से जाना होगा घर
इसी बात से लगता डर

किसी और ने चाल चली
हमें बता दिया 'मुख़बर'

खूब पता है इश्क नहीं
फिर भी करते आडंबर

कैसे कर लेते हो सब ?
100 में पूरे 100 नंबर

हर लम्हे में दिल मारा
कब थे हम इतने बर्बर ?

सौ शैतानों में 'इब्लीस'
बता रहे हैं 'पैगंबर'

अपना मन ही काला होगा
बाकी सब हैं 'श्वेतांबर'

ख़बरी बड़ा अकेला है
लेते रहना खोज ख़बर !

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'


आईने में जब भी देखा...


आईने में जब भी देखा
तू भी दिखा, डर भी दिखा,
मेरे जैसा ही कोई चेहरा
बार-बार मर भी दिखा ।

साथ-साथ तो चले हमेशा
राह अलग थी, सोचें भी
पूरा रस्ता ख़ामोशी थी
हर मोड़ पर असर दिखा।

बातें कम, हिसाब ज़्यादा
लम्हे सभी उधारी के,
एक घरौंदा, पर उस घर में
किराए जैसा दर दिखा।

दिन बँटते थे अखबारों में
रातें थक के सो जातीं,
सपनों में बस भीड़ रही
और नींदों में सफ़र दिखा।

मुस्कानों में मोल लगा था
जज़्बातों का वज़न हुआ,
हम जीते थे शर्तों पर
आवाज़ों में ज़हर दिखा।

वो रिश्ता जो प्यार कहाया
बोझ लगा है हर पल में,
तू भी था, मैं भी लौटा
मगर नहीं कोई 'घर' दिखा।

'खबरी' ने जब कलम उठाई
शब्द जले, पर बात न की
काग़ज़ पर बस राख बची थी
उसमें एक भंवर दिखा।

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'


रमता जोगी, बहता पानी... तेरी राम कहानी क्या ?


रमता जोगी, बहता पानी
तेरी राम कहानी क्या ?
आहट-आहट, चौखट-चौखट
बैरन नई पुरानी क्या...?

उन बातों की बातें मुझको
बिल्कुल वैसे ताजी हैं
जैसे साखी, सबद, सवैये
कोई प्रेम कहानी क्या !

बारिश, जंगल, हवा, पहाड़ी
नदियां अभी रवानी हैं !
लेकिन सारी बातों मुझको
तुझको सुनी सुनानी क्या ?

आते-जाते, रुकते-चलते,
कुछ तो दिल में चुभता है,
जब जब कह देता है कोई
गा दूं तुझको हानी क्या ?

पागल, पागल होकर देखा
तेरे एक बहाने से
और तभी से दुनिया भर की
मुश्किल मुझको मानी क्या...?

- देवेश वशिष्ठ 'खबरी'