30/10/22

तबाही मेरी


डूब गई रौशनाई मेरी
तुम्हें देखनी है तबाही मेरी ?

घर नहीं लौटना तो इतना बता दो
कहां रखी है दवाई मेरी ?

कैसे यकीन दिलाऊं, एक दौर था
होती थी वाहवाही मेरी

तुम्हारे संग कुछ लिख नहीं पाया
और सूख गई सियाही मेरी

अब तुम कहो वो ही सच है
कौन मानेगा गवाही मेरी ?

अब लौट भी आओ, क्या फर्क पड़े
अकेली ही होगी विदाई मेरी

मेरी तितली के पंखों में धंस गए कांटे
यही फसल थी उगाई मेरी ???

@ देवेश वशिष्ठ खबरी (अक्टूबर 2022, ग्रे.नो.)